तुमने जबसे है मेरा साथ छोड़ा,
तुमने जबसे है मेरा साथ छोड़ा,
हर किसी ने हमसे मुंह है मोड़ा।
जबसे गई लेकर अंतिम विदाई,
चारों दिशाओं ने भी की हमसे
रुसवाई।
हित मीत सगे सम्बन्धी सभी
छलते है,
दिन – रैन खिलाफ मेरे षड्यन्त्र
रचते है।
लड़ रहा हूं अस्तित्व की अंतिम
लड़ाई,
अब तो डरा रही है मुझे मेरी ही
परछाई।
जालिम दुनिया मेरी जान लेके ही
मानेगी,
हो सकता है फिर मुझे पहचानेगी।
तुम्हारे प्रति मेरे समर्पण का कर
रहे लोग परिहास,
पल – पल व्यंग की तीर से करते
है आघात।
मुझे भी अब जीने का नही रहा शौक,
जानता हूं इस दुनिया में बस शाश्वत
है एक मौत।
लोगो के इल्जामों को कब तक सह
पाऊंगा,
अचानक से एक दिन आलोक – अर्चना
में मिल जाऊंगा।
मौलिक एवं स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® आलोक पाांडेय
गरोठ, मंंदसौर, (मध्यप्रदेश)