तुमनें जो चहकना छोड़ दिया।
एक रचना
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22…….22……22……22
तुमनें जो चहकना छोड़ दिया।
हमने भी तो हँसना छोड़ दिया।
भौंरे गुनगुन करना भूले,
कलियों ने खिलना छोड़ दिया।
बिजली अपनी कड़कन भूली,
बादल ने बरसना छोड़ दिया।
नदियों का जल भी सूख गया,
मछली ने तड़पना छोड़ दिया।
मेरी कोशिश थी मिलने की,
तुमनें ही तो मिलना छोड़ दिया।
क्यों प्रेम से इतने विमुख हुए,
‘प्रेमी’ से ही मिलना छोड़ दिया।
………✍️सत्य कुमार प्रेमी