” तुमको नाज़ ज़रूरी था ” !!
रहमत बरसी तुम पर रब ने , तुमको नाज़ ज़रूरी था !
चाँद अगर शरमाया है तो , कह दो आज ज़रूरी था !!
नज़रें थक आई देखा तो , ऊँचाई पर तुम इतने !
हम भूले औकात जो अपनी , गिरना गाज ज़रूरी था !!
पलक झपकते रंगत बदली , रुसवाई हम जान गये !
दिल का ग़म बढ़ता ही जाये , बजना साज ज़रूरी था !!
मुस्कानों के तीर चलाकर , तुमने सब बाज़ी मारी !
दिल पर पत्थर रखकर हमने , जाना राज ज़रूरी था !!
” नीरद ” बन बैठे सौदागर , सपने खूब दिखाये भी !
जिस पर सबको है गुमान भी , बचना ताज ज़रूरी था !!
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )