तुमको कैसे भुलाऊं
क्या भूल सकता है आकाश को कोई
मै तुमको कैसे भुलाऊँ
क्या भूल सकता है सूरज को कोई
मै तुमको कैसे भुलाऊँ
क्या भूल सकता है चाँद तारो को कोई
मै तुमको कैसे भुलाऊँ
क्या भूल सकता है इन झरनो नदियो को कोई
मै तुमको कैसे भुलाऊँ
क्या भूल सकता है कोई अंधियारी रातो को
मै तुमको कैसे भुलाऊँ
क्या भूल सकता है कोई सवेरे की उजली किरणों को
मै तुमको कैसे भुलाऊँ
क्या भूल सकते हो तुम जीवन के वो लम्हे
वो इंद्रधनुष के रंगो सा प्रेम हमारा
जिनमे हम तुम संग थे
और ये सारी प्रकृति साक्षी थी
ये कल भी थी उन लम्हों में जब, तुम संग थे
ये आज भी है, जब तुम नही हो
जब इसको मै भुला नही सकती ,जो अखण्ड सत्य है
जो मेरे समक्ष साक्षी है ,आज भी उसी प्रकृति रूप से मै तुमको कैसे भुलाऊँ
मै तुमको कैसे भुलाऊँ
मेरे सनम मेरे साथी ये साथ मेरा तुम्हारा
इसी प्रकृति की तरह बनता बिगड़ता रहा और ये साक्षी रही सदा से और रहेगी…।