तुझे बताने
ज़माने बाद, ज़माने से भाग कर
आया था तुझसे से मिलने।
जो बातें दुरियों में दब गई थीं,
आया था तुझे बताने।
सर्दियों की धूप, उसकी चमक
तेरी मेंहदी से रंगी जुल्फों में थी।
जज़्बात जो फासलों में उलझ गए थे,
लाया था तुझे दिखाने।
मखमल के रेशे, वैसी कोमलता
तेरी नाज़ुक सी हथेली में थी।
जिस स्पर्श को भूल चुका था,
आया था उसे वापस अपना बनाने।
जेबों में ख़्वाब, उनकी गुनगुनाहट
तेरी खनकती हुई सी आवाज़ में थी।
जो बातें दुरियों में दब गई थीं,
आया था तुझे बताने।
– सिद्धांत शर्मा