तुझे देखने को चाह में
तुझे देखने को चाह में
हां आज भी मैं कभी खुद की
राह नही बदलता
बदलता हूँ मैं खुद को
तेरे आने जाने की आस लिए
मैं अपनी राह नही बदलता
बदलता है मौसम खुद को
इस मौसम बदलने के डर से
खुद की राह नही बदलता
बदल लिया है इंसान ने खुद को
समय के अनुसार बदल लिया है चेहरा
लेकिन तेरे कदमो की आहट कानो तक पहुंच पाए
इसलिए मेरे कदम अपनी राह नही बदलते
तरस गयी है आँखे मेरी
दफ़न हो गए कितने अरसे ऐसे ही
तुझे पाने को चाह में
नही बदली तो वो मेरी राह और
तुझे पाने को चाह
आज भी उसी समान मेरे भीतर
ज़िंदा है जैसे पानी से भरे समुंद्र की प्यास