तुझे जिया
बूँद से –
समुंद तक
तुम-
इतना फैले…
कि सिमट नहीं पाए…
किसी भी अंक में।
इतना विस्तार….
कि
अणु से ब्रह्मांड तक-
सिलसिले में है यात्रा…
अनंत तक!!
पर….
मुझे याद है –
तुम-
इतने..
इतने….
छोटे हो गए थे-
मेरे बचपन में..
कि
मैं
तुझे
अपने नन्हें हाथों से
खूब छुआ…!
खूब पीया…!
और तो और…..
तेरी आँखों में झाँक कर –
खूब जिया…..!!!
—- कुमार अविनाश केसर
मुजफ्फरपुर, बिहार