तुझे क्यो दर्द नही तेरा इक खिलौना टूट जाने में
मिलने की छटपटाहट उमंगे लगी फड़फड़ाने में
मेरी आबरू तेरी चौखट पे ही लूटी तुझे पाने में
मेरी छत पे आ बैठ गये कुछ मासूम नादाँ परींदे
बेचैन मस्जिद सहमें शिवाले हम थे मुस्कुराने में
शायद मेरे भाग्य में लफ्ज़ नहीं बचें अब तेरे लिए
क्या शौक तेरा कठपुतली की तरह मुझे नचाने में
मैं वक्त का मारा हूँ तेरा फरेब मुझे जड़ कर गया
तुझे क्यों दर्द नहीं एक तेरा खिलौना टूट जाने में
बेवफ़ाई की गर कोई उम्र होती तो तुझे नवाजता
चापलूसों की महफ़िल में रहा तू ज़मीर गिराने में
खुदा का बन्दा होगा कोई तो तेरा भी गुरु जहॉ में
सबकी जुबाँ पे एक ही नाम तेरे उसके दोस्ताने में
मैंने तो तेरे नाम की मय पी ली है मेरे ख़ुदा सुनले
तुझे पीनी हो मय मेरे नाम की तो आ मेरे मैखाने में
अशोक सपड़ा हमदर्द