तुझे कहा कहा नही ढुना इन बनारसी गलियों में
तुझे कहा नही ढूना हमने , हर राह पर अपनी आँखें बिछाई ,
हर घाट पर बैठा ,गंगा से भी तुझको मांगा , कहकर नही चुप होकर तेरा इंतजार किया ,
तूझे कहा कहा नही ढूना इन बनारसी गालियों में ,हर राह पर अपनी आँखें बिछाई इन बनारसी गलियों में ,
कम्बख्त सबके गीले शिकवे पूरे हुए , खुदा ने हमारे ही शिकवे को अधूरा अधूरा छोड़ दिया ।
आखों में तलब लेकर उन्ही रास्ते से चला आया मैं घर ,
सड़को पर चमकती मेरे दिल मे धधकती ये जुगनुओं वाले बल्ब मैं आधी रात बुझा चला आया ,इन बनारसी गलियों के,
जिक्र तेरे नाम का हुआ दिल मे आयते बने होठो पर किलकारियां खिली पर मन बैचेन हो गया इन बनारसी गलियों में ,
ऐसा ना कोई पल था वहां ,ऐसा ना कोई लिखावट थी वहां जिसमे तेरी रूह ना हो , तुझे कहा कहा ना ढुना इन बनारसी गलियों में ,
तेरी याद आई इन्ही बनारसी गलियों में , समेट चला मैं फिर से इन लम्हो को फिर से फ़क़ीर बन गया मैं इन बनारसी गलियों में ।
तुझे कहा कहा नही ढुना इन बनारसी गलियों में ।।।
~❤️