तुझे कबूल इस समय
परिस्थितियाँ नही है मेरी माकूल इस समय
तू ही बता कैसे करूँ तुझे कबूल इस समय ||
इशारो मे बोलकर कुछ गुनहगार बन गये है
लब्जो से कुछ भी बोलना फ़िज़ूल इस समय ||
परिवार मे भी जिसकी बनती थी नही कभी
क्यो खुद को समझता है मक़बूल इस समय ||
इंसान से इंसान की इंसानियत है लापता
दिखता नही खुदा मुझे तेरा रसूल इस समय ||
जो ना आए कभी कितने कमाल के दिन थे
याद उनको करके करेंगे हम भूल इस समय ||