तुझसे मिलती हूँ जब कोई बंदिश नही रहती,
तुझसे मिलती हूँ जब कोई बंदिश नही रहती,
सुलझ जाता है मेरे भीतर सब
कोई उलझन नही रहती,
सोचती हूँ ऐसा क्या वास्ता है हमारा,
जब भी होती है गुफ्तगू तुझसे
सब हल्का हो जाता है
तब किसी से ना कोई शिकायत
और ना ही जिस्म में कोई हरारत रहती😘✍️