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8 Jul 2016 · 1 min read

तुकबन्दी को यार छंद, ग़ज़ल कहता हूँ

बात कड़वी है मगर साफ़ सरल कहता हूँ !
तुकबन्दी को यार छंद, ग़ज़ल कहता हूँ !!

जब वो आते है मुस्कुराते हुये घर की तरफ़,
मै अपने झोपड़ी को ताजमहल कहता हूँ !!

काम आयेगी नहीं स्वर्ग की परियाँ मेरे,
जीवन संगिनी को चाँद, कमल कहता हूँ !!

मोटी हो जायेगी सच खाके तू पिज्जा बर्गर,
चाँद को छत पे सुबह शाम टहल कहता हूँ !!

अमर होना नहीं है जुगनू को अमृत पीकर,
जानता हूँ मगर अमृत को गरल कहता हूँ !

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