तीसरा वरदान- ‘ऐन अनस्पोकन विश’
तीसरा वरदान- ‘ऐन अनस्पोकन विश’
“उठो वत्स” आध्यात्मिक टाइप की आवाज बार-बार कानों में पड़ रही थी जिसे बिस्तर पर लेटे-लेटे मैं सुन रहा था और झल्ला रहा था कि कौन है जो इतनी अच्छी नींद हराम कर रहा है।
मैं आवाज को इग्नोर करते हुए नींद की मदहोशी में फिर घुसने की कोशिश करने लगा तभी फिर वही आवाज आयी,
“उठो वत्स !”
अब पेसेन्स जवाब दे चुका था और नींद का भी बैंड बज चुका था इसलिए झल्लाकर मैं झटके से उठ बैठा। जब आँख खुलती है तो सामने एक ड्यूड टाइप का युवक माइथोलोजिकल गेटअप में सामने खड़ा मुस्कुरा रहा था।
मैं झल्लाकर बोला “क्या है? काहे अच्छे खासे नींद की वाॅट लगा दी?”
सामने वाला युवक मुझे देखकर बस मुस्कुराए जा रहा था।
अब तो मेरा पारा हाई हो गया , मैं थोड़ा झुंझाहट के साथ बोला “क्या हुआ? कुछ बोलोगे? कौन हो ? क्या काम है? क्यों मेरे पास आये हो?
मेरे सवालों की बौछार को रोकते हुए युवक ने कहा, “मैं ईश्वर हूँ, मैं तुम्हें वरदान देने आया हूँ।”
मैं झुंझलाकर बोला,”वाॅट द हेल, सुबह से मैं ही मिला हूँ। बाॅस इट्स जैनुअरी नाॅट ऐप्रिल जो ऐप्रिल फूल बनाने चले आये।”
युवक ने मुस्कुराते हुए फिर कहा, “मैं ईश्वर हूँ”
मैंने घूरते हुए कहा, “देन प्रूव इट।”
युवक ने मुस्कुराते हुए अपना दायाँ हाथ उठाया है और आशीर्वाद देने की मुद्रा में हथेली को कुछ मेरी तरफ आगे किया । हथेली के बीच से एक लेजर बीम सी निकली और मुझसे टकाराई । बीम के टकराते ही मुझे करेंट का तेज झटका लगा और अगले ही पल मैं सावधान मुद्रा में युवक के ठीक सामने खड़ा था। मेरी आँखें भय व आश्चर्य से फटी हुई थी , मुझे समझ में ही नहीं आ रहा था कि क्या हुआ कि तभी युवक की आवाज मेरे कानों में पड़ीं, “वत्स और प्रमाण चाहिए क्या?”
मैंने मन में सोचा कि एक प्रमाण ने करेंट का तेज झटका दिया , अब अगर दूसरा माँगता हूँ तो ना जाने क्या हो? इसलिए बेटा अब ईश्वर मान लेने में ही भलाई है , मैं सोच ही रहा था कि फिर वही आवाज आयी, “वत्स और प्रमाण चाहिए?”
“प्रभुssssss” मैं चिल्लाते हुए युवक(ईश्वर) के पैरों पर गिर पड़ा और गिड़गिड़ाने लगा, “प्रभु! फाॅरगिव मी , मुझसे बड़ी गलती हो गई, मैं आपको पहचान नहीं पाया, फाॅरगिव मी।”
ईश्वर(युवक) हाथों से सहारा देकर मुझे उठाते हुए बोेले , “उठो वत्स ! हमने तुम्हें क्षमा किया ।”
मैं हाथ जोड़कर बोला, “नहीं ..नहीं प्रभु ! इट्स अ बिग मिसटेक, फाॅरगिव मी।”
मुझे पैरों में लगभग गिरने से रोकते हुए ईश्वर बोले, “इट्स आॅल राइट बडी, आई फारगिव यू। डोंट वेस्ट माई टाइम , आई हैव लाॅट आॅफ थिग्स टू डू।”
मैं आश्चर्य से उछल पड़ा , “प्रभु! अं..ग..रे..जी”
ईश्वर आँखें चमकाते हुए टशन में बोेले, “यस …आई कैन टाॅक इन एवरी लैंगवेज।”
मैं मसका लगाते हुए बोला, “प्रभु ! मैं तो भूल ही गया था कि मैं सर्वशक्तिमान ईश्वर के समक्ष खड़ा हूँ।”
ईश्वर (थोड़ा ऐटीट्यूड में) बोले , “ठीक है …ठीक है, अब मेरा टाईम वेस्ट ना करों और जल्दी से तीन विसेज माँगों।”
मैं (हड़बड़ाते हुए) , ” तीन विसेज।”
ईश्वर , ” हाँ..हाँ तीन विसेज, जल्दी माँगों ..मेरे पास फालतू टाईम नहीं है …काॅज़ आई एम वेरी बिज़ी परसन…आई मीन बिजी गाॅड।”
इधर मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि इतनी जल्दी में क्या माँगू और उधर ईश्वर थे कि जल्दी-जल्दी की रट लगाए हुए थे इसलिए ज्यादा कुछ सोचे बिना मैं बोल पड़ा , “आई फोन 12”
ईश्वर ने आशीर्वाद की मुद्रा में अपना हाथ उठाया और बोले, “तथास्तु!”
अगले ही पल आई फोन मेरे हाथ में था जिसे देखकर मेरी चीख निकल पड़ी, “आई ला…ये तो रियल है …लेटेस्ट है।”
मैं आश्चर्य से फोन को देखे जा रहा था कि ईश्वर की आवाज आयी, “दूसराssss…दूसरा विस माँगों।”
मैं आईफोन से ध्यान हटाते हुए ईश्वर से मुखातिब होते हुए बोला, ” प्रभु! माँगता हूँ …लेट मी गूगल फस्ट?”
मैं आई फोन पर गूगल करने लगा कि क्या विस माँगू लेकिन नेट स्पीड इतनी स्लो थी की बफरिंग का गोला बस घूमे जा रहा था …बस घूमे जा रहा था … इसलिए झुंझलाते हुए मैं बोला, “प्रभु ! हाई स्पीड 5जी इंटरनेट कनेक्टविटी ।”
ईश्वर , “तथास्तु!”
अगले ही पल आई फोन 5जी नेटवर्क पर कनेक्ट था और इंटरनेट तो बुलेट ट्रेन सा दौड़ रहा था। मैं 5जी के फीचर्स देखने में व्यस्त था कि तभी ईश्वर की आवाज फिर कानों में पड़ी, “तीसरा ।”
मैं ईश्वर की तरफ पलटा और लगभग हकलाते हुए पूछा, “ती..ती..तीसरा?”
ईश्वर , “हाँ…हाँ तीसरा …हरी अप…यू हैव वोनली ट्वेंटी सेकेंड्स लेफ्ट ।”
मैं हकबकाते हुए , “वाॅट? वोनली ट्वेंटी सेकेंड्स।” और जल्दी से गूगल करने लगा लेकिन समझ में नहीं आ रहा था कि क्या सर्च करूँ। मैं कभी कुछ टाइप करता तो कभी कुछ , इधर फर्जी मे दस सेकेंड्स बीत गए और उधर ईश्वर का काउंट डाउन अपनी रफ्तार पकड़े था…
टेन…
नाइन…
एट…
सेवेन…
सिक्स…
इधर मेरे दिल की घड़कन काउंटडाउन सुनकर दुगनी रफ्तार से घड़क रही थी और ॖउधर काउंटडाउन चालू था अपनी रफ्तार से…
फाइप…
फोर…
थ्री…
टू…
वन…
मैं चीख पड़ा ,” प्रभूsssssss”
ईश्वर मुस्कुराते हुए ,”योर टाइम इज अप…वेल ट्राई…नाऊ आई एम गोईंग…सी यू सून…”
ईश्वर की बात अभी पूरी नहीं हुई थी कि मैं उछलकर उनके चरणों में गिर पड़ा और उनके पैरों को कसकर पकड़ते हुए बड़बड़ाने लगा, “प्रभु! मैं आपको जाने नहीं दूंगा जब तक आप मेरी तीसरी विस पूरी नहीं कर देते…मैं नहीं जाने दूंगा।”
ईश्वर (झुंझलाते हुए), “यू फूल…छोड़ मुझे …आई हैव अ डेट विद रंभा टुडे…मैं लेट हो जाऊंगा…छोड़…”
मैं (बड़बड़ाते हुए) ,”मैं नहीं छोड़ूंगा…मैं नहीं छोड़ूंगा…”
“तड़ाक!” एक जोरदार थप्पड़ मेरे थोपड़े पर पड़ता है। थोड़े देर की खामोशी के बाद…
“ये क्या लगा रखा है ? कामवाली को क्यों पकड़े हुए हो?” लाल-लाल आँखे किये हुए रणचंडी रूप में आँखों के सामने श्रीमतीजी खड़ी थी और जिसके पैरों को पकड़े मैं पड़ा था वो हमारी कामवाली ‘चम्पा’ थी जो भय व शर्म से लाल हो गई थी । सपना टूट गया था …और जेहन में तीसरा वरदान चल रहा था।
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रचनाकार – रूपेश श्रीवास्तव ‘काफ़िर’
स्थान – लखनऊ (उ०प्र०) भारत