तीव्र उड़ान
चांँद को छूने की मन में लहर उठी तीव्र,
कैसे पहुंँचे उस तक बना व्यंग्य का तीर,
कोशिश थी अभी दूर लक्ष्य बड़ा अजीब,
दिन-दिन भर यह सोचा करता,
सीढ़ी बना लूँ क्या उस तक,
चढ़ कर फिर उसमें पहुँच जाऊँ उस तक,
कार्य था बहुत कठिन देखना था वो दिन,
उत्तेजना की लहर उठती रही मन में,
पा ना सका लक्ष्य कैसे सपना होगा सच,
तभी सहसा उठा नींद से ,
तीव्र गति से लगा बनाने ,
सीढी़ एक विशाल ,
महीने बीते बर्षो बीते ,
हुआ एक दिन महासंग्राम ,
छोटी कोशिश ऊँची सोच,
चला आज चांँद की ओर ,
पल-भर में सच हुआ ,
मानव का यह लक्ष्य बड़ा ,
क्षितिज पर जगमगाया ,
सुख-शान्ति का मार्ग बनाया ।
#..बुद्ध प्रकाश; मौदहा ,हमीरपुर (उ०प्र०)