तीन शब्द
खुशी खुशी अपने शौहर के
घर विदा होकर आ गयी वो
छोड़ अपना घर गली आंगन
नये सपनों की रंगीन दुनियां
कुछ सुनहरे ख्वाबों का मेला
कुछ दिनों बाद निकल गया
उसका पिया परदेश दूर कहीं
अब जी रही थी वो अकेले
वापस आने की आस लिए
मन ही मन अपने प्रिय की
असीम प्रेम ह्रदय में बसाये
दिन रात बस बाट जोहती
रोज के जैसे उसकी फोटो
चुपचाप सबसे छिपाए हुए
कमरे में दबे पांव आयी
कि फोन की घण्टी बजी
दौड़ कर प्रीतम की मीठी
प्यारी प्यारी बतियाँ सुनने
परन्तु उस रात उसे बस
तीन ही शब्द सुनाई दिए
जो भेद कर गए तन मन
ले गए जैसे सम्पूर्ण जीवन
पेट में पल रहे बच्चे की
खुशखबरी होठों पे रह गयी
आँखों से आसुंओ की धार
आहों के घनघोर काले अंधेरे
और कानों में मात्र तीन ही
वह चुभने वाले शब्द बचे थे
तलाक..!तलाक..!तलाक..!