√√तीन मुक्तक : बचपन,जवानी,बुढापा
तीन मुक्तक
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(1) बचपन
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उमर के दौर में सबसे मजे का दौर बचपन है
न जिम्मेदारियाँ कोई उछलता-कूदता मन है
कहाँ है ऐसी बेफिक्री ,कहाँ इस दौर की मस्ती
न पक्की दोस्ती कोई ,न पक्का कोई दुश्मन है
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(2) जवानी
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जवानी से जो पूछो हाल तो इठलाएगी पहले
ठहाका मारना जोरों से वह बतलाएगी पहले
जवानी ने कहाँ देखा बुढ़ापा-मौत को अब तक
अगर सोचा जरा भी तो बहुत घबराएगी पहले
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(3) बुढ़ापा
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लिखी किस्मत बुढ़ापे की बहुत ही क्रूर होती है
जवानी वाली मस्ती और फुर्ती दूर होती है
तरस खा- खा के मिलती है मदद जो मौत से बदतर
कराहती-साँस ढ़ोने को बदन मजबूर होती है
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रचयिता: रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा,
रामपुर, उत्तर प्रदेश मोबाइल 99976 15451