तीन मुक्तकों से संरचित रमेशराज की एक तेवरी
जनता पर वार उसी के हैं
चैनल-अख़बार उसी के हैं |
इसलिए उधर ही रंगत है
सारे त्योहार उसी के हैं |
सब अत्याचार उसी के हैं
अब थानेदार उसी के हैं |
हम सिसक रहे जिस बोझ तले
सारे अधिभार उसी के हैं |
कोड़े तैयार उसी के हैं
बिजली के तार उसी के हैं |
तू बचा सके तो बचा बदन
फैंके अंगार उसी के हैं |
+रमेशराज