तीन बार गले मिले मोदी-नेतन्याहू!
भारतीय मीडिया सचमुच गोदी मीडिया बन चुका है. ठेठ शब्दों में कहें तो वह सत्ता का भाट-चारण बन चुका है. दिन-प्रतिदिन अपनी विश्वसनीयता खोते जा रहा है. वे ही लोग अब उसे अपना समझते होंगे जिन्होंने अपनी तार्किकता को तिलांजलि दे दिया हो. एक वक्त ऐसा लगता था कि बढ़ते टीवी चैनलों और समाचार पत्रों के कारण परस्पर प्रतिस्पर्धा के चलते उनका जनसारोकारों के प्रति निष्ठा बढ़ेगी लेकिन हो इसके विपरीत रहा है. अब तो उसका काम सिर्फ लोगों की सतही भावना को भड़काना बनते जा रहा है. यदि वह कोई सूचना भी देता है तो बिल्कुल सूचनात्मक, अगर विश्लेषण करेगा तो भड़काऊ या फिर साफ-साफ चरणवंदन. वास्तविक राष्ट्रभक्ति-जनभक्ति तो दूर-दूर तक नजर नहीं आती उसके रवैये में. आम जनता को सिर्फ मीडिया के भरोसे रहने की बजाय अपनी विवेकशीलता और तार्किकता की कसौटी का विकास करना चाहिए. अभी हाल ही में हमारे प्रधानमंत्री मोदीजी संयुक्त राज्य अमेरिका की यात्रा के बाद इजराइल पहुंच गए. तो बस क्या था यहां के मीडिया को कम से कम चार दिनों के लिए शानदार और स्पाइसी न्यूज-इवेंट मिल गया. सस्ती लागत और न्यूनतम श्रम में डायमंड टीआरपी भी मिल गई और राजप्रसाद भी. मोदी की इजराइल यात्रा पर अखबारों एवं टीवी चैनल की हेडिंग- ‘इजराइल ने मोदी का स्वागत पोप की तरह किया- ट्रम्प के बाद इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने मोदी को तीन बार गले लगाया, सालों बाद कोई भारतीय प्रधानमंत्री इजराइल यात्रा में पहुंचा, इजराइल के राष्ट्रपति ने प्रोटोकाल तोड़कर मोदी का स्वागत किया, इजराइल से मिलकर करेंगे आतंकवाद का खात्मा’ आदि-आदि न जाने कितने तरह से शब्दों की बाजीगरी की गई. यह सब लगातार दो-तीन दिन तक लगातार चलता रहा. मीडिया ने देशवासियों को यह नहीं बताया कि मोदी जी का स्वागत इसलिए हो रहा है कि इजराइल के 41 प्रतिशत हथियारों का (अर्थात दुनिया का सबसे बड़ा) खरीदार तो सिर्फ भारत है. आप ही सोचिए, अगर आप किसी दुकान में खरीदी के लिए जाते हैं और दुकानदार को पहले से यह पता हो जाए कि आप उसके मोटे खरीदार हैं तो फिर उस दुकानदार का व्यवहार आपके प्रति किस तरह का रहता है, इसके विपरीत कभी यूं ही उस दुकानदार को दुआ-सलाम करने जाइए तो फिर देखिए वह शायद आपको उसका जवाब भी न दे. अरे भाई मोदी जी उनसे तीन बार गले मिलते या न मिलते, न भी जाते तो डोनाल्ड ट्रम्प और बेंजामिन नेतन्याहू मोदी के गले पड़ते ही. मोदीजी की जगह कोई भी प्रधानमंत्री होता तो भी वे उनके साथ यही करते. इजराइल इसमें अपना फायदा देख रहा है. इस यात्रा के फायदे को मीडिया इस अंदाज में बता रहा है कि इजराइल से भारत को आधुनिक हथियार तो मिलेंगे ही, आतंकियों की कमर तोड़ने की रणनीति भी मिलेगी. खेती, सिंचाई, जल-रक्षा आदि के क्षेत्र की दुर्लभ तकनीकें भी भारत को सुलभ हो जाएंगी.
आतंकी देश से मिलन और उसके माध्यम से आतंकवाद को पराजित करने की अपील इस दौर का सबसे बड़ा मजाक है. प्रधानमंत्री मोदी जी गांधीजी के गुजरात से आते हैं. आजकल उन्होंने गांधी-गान वैसे भी शुरू कर दिया है. ऐसे में इजराइल के प्रधानमंत्री से मिलने का फैसला लेते समय कम से कम गांधीजी का तो ख्याल किया होता, अपनी आत्मकथा में गांधी जी ने इजराइल के बारे में क्या कहा था, यह पढ़ लिया होता. क्या सिर्फ नाममात्र के लिए भारतीय मुद्रा में उनका ऐनक छपा दिया है.
इजराइल से हमारी इस दोस्ती से आतंकवाद के खात्मे की बात बिल्कुल निराधार है. पाकिस्तान और इजराइल ये दो देश, अमेरिका के आतंकवादी हाथ हैं. इजराइल तो स्वयं एक आतंकवादी देश है. उसके इस चरित्र में विगत छह दशकों में कोई बदलाव नहीं आया है. इजराइल सारी दुनिया में आतंकवाद का सर्जक है. यहां तक कि आईएसआईएस के निर्माण में उसकी सक्रिय भूमिका रही है. यूएनओ की अनेक जांच रिपोर्ट्स में यह बात दर्ज है. इजराइल से मित्रता कर भारत कभी भी आतंकवाद से जीत नहीं सकता. सारी दुनिया यूएनओ में बैठकर अनेक बार उसके आतंकी हमलों की सामूहिक तौर पर निंदा कर चुकी है.
इजराइल जन्म से विस्तारवादी यहूदीवादी राष्ट्र रहा है. इजराइल को लोकतंत्र और संप्रभुता से नफरत है. सीरिया में अलकायदा के आतंकियों की तनख्वाह इजराइल देता रहा है. जिस तरह पाक के यहां से हमारे यहां आतंकी हमले होते रहे हैं, ठीक वैसे ही इजराइली सेना फिलिस्तीनियों पर आतंकी हमले करती रही है. सब जानते हैं कि ‘हमास’ को आतंकी संगठन के रूप में खड़ा करने में इजराइल ने वैसे ही मदद की है जैसे हुर्रियत को पाक ने की है. अगर पाक आतंकवादी देश है तो इजराइल भी आतंकवादी देश है. अमेरिका का साथ जब इजराइल को गैरआतंकवादी राष्ट्र न बना सका तो मोदीजी की क्षमता तो एकदम भोंपू मीडिया तक सीमित है. इजराइल से मित्रता असल में भारत की आतंकवाद के खिलाफ नैतिक पराजय है. इजराइल से मित्रता का मतलब है आतंकी देश से मित्रता. यह सारी दुनिया को मालूम है कि अमेरिका, इजराइल, फ्रांस, जर्मनी और इटली हथियारों के सौदागर हैं. वे तमाम तरह के ऐसे उपक्रम दुनिया भर में करते रहते हैं जिससे हथियारों की प्रसांगिकता दुनिया में बनी रहे. हथियार निर्माण और उसका व्यापार उनकी अर्थव्यवस्था का बहुत बड़ा हिस्सा है. अब तो अमेरिका ने भारत में ही हथियारों के कारखाने खोलने की इजाजत मोदी सरकार से ले लिया है. इस यात्रा से दोनों देशों के चंद लोगों के लाभ को पूरे देश के लाभ से क्यों जोड़ा रहा है. हालांकि पिछली सरकारें भी यह सब करती आई हैं किंतु विदेश यात्राएं सिर्फ विदेश यात्राएं होती थीं, उन्हें इतना बड़ा इवेंट शो बनाकर बिग एचीवमेंट (महान उपलब्धि) के तौर पर पेश नहीं किया जाता था.
[फेसबुक पोस्ट 6 जुलाई 2017]