तीन दोहे
मारे मारे फिर रहे लोग,
धन गया, गया ईमान,
व्यवाहरिक नासमझ है,
धार्मिक बन बांटे ज्ञान.
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रोने को मजबूर हैं लोग,
सुनने को नहीं तैयार,
बोलते बहुत अधिक हैं,
देख कैसे २ व्यवहार.
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चिर परंपरा ऐ जहान् की,
एक अविश्वास कारणे,
पाहन पत्थर पलटे अनेक.
याते भले खुद कू जाणे.
डॉक्टर महेन्द्र सिंह हंस