{{{ तीन गपोड़ी }}}
“तीन गपोड़ी”
@दिनेश एल० “जैहिंद”
तीन गपोड़ी गल्प लगाते,
करते उल्टी-सीधी बात !!
गप्पबाजों को ध्यान नहीं,
गप्प लगाते गुजरी रात !!
लिये सबने ठेली वाले से,
खाने को छह गोल गप्पे !!
दुनिया देखी थी तीनों ने,
जहाँ छाने थे चप्पे-चप्पे !!
गप्पू लाल ढींग बाज था,
कहे छोटी-बड़ी कहानी !!
सुन-सुनकर बाकी दो को
थी याद आई बूढी नानी !!
डींग हाँकने में माहिर एक,
था पप्पू लाल बड़ा गपोड़ी !!
शेष दोनों के सामने उसने,
एक गप्प जबरदस्त छोड़ी !!
कहाँ कम था गप्पी पाल,
गप्पों का था वो खजाना !!
जहाँ मिलते दो-चार मित्र,
हो..हो लोट-पोट हँसाना !!
गप्पू लाल की गप्प बड़ी,
वो करे बाघ की सवारी !!
पप्पू लाल वृक्ष से फांदे,
चढे़ उल्टे पैर बारम्बारी !!
सोख पानी नदियों का,
पकड़े मीन गप्पी पाल !!
कौन सुनाए ऐसी गप्प,
पप्पू लाल न गप्पू लाल !!
गोल-मटोल गप्पे खाके
सबने बातें खूब मरोड़ी !!
झूठ बाबा की जय सदा,
वाह रे भाई गप्प-गपोड़ी !!
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दिनेश एल० “जैहिंद”
18. 01. 2019