तीन कुंडलियाँ
तीन कुंडलियाँ
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भारत माता 【 कुंडलिया 】
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भारत माता धन्य तुम ,तुमको कोटि प्रणाम
गीत तुम्हारे गा सकें , कृपा करो अविराम
कृपा करो अविराम , तुम्हारी गाथा गाएँ
तुम पर जो बलिदान ,उन्हें दो पुष्प चढ़ाएँ
कहते रवि कविराय ,नहीं मन कभी अघाता
चाह रहा यशगान , और हो भारत माता
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फाँसी चढ़े तमाम 【 कुंडलिया 】
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जेलों में यौवन कटा ,फाँसी चढ़े तमाम
पिस्तौलों से मित्रता , दीवानों के काम
दीवानों के काम , जवानी भेंट चढ़ाई
आजादी की चाह , दंड था गोली खाई
कहते रवि कविराय , याद करिए मेलों में
जिनका था तारुण्य ,कैद जीवन जेलों में
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जय जननी 【 कुंडलिया 】
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जननी हो या जन्म-भू , होती है अनमोल
तुलते चाँदी स्वर्ण हैं ,माँ की कभी न तोल
माँ की कभी न तोल , देश है सबसे पहले
कर ले कोई कैद , पुत्र यह कैसे सह ले
कहते रवि कविराय , शत्रु से रहती ठननी
करके प्राणोत्सर्ग ,भक्त कहता जय जननी
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451