तिवारी जी की कहानी
पंडित खुशालीराम तिवारी एक सच्चे हिंदुस्तानी थे कुछ अंग्रेज सिपाही इनसे द्वेष भावना रखने लगे अंग्रेज सिपाहियों ने इनको फंसाने के लिए कुछ हिंदुस्तानियों को कुछ लाभ देकर अपने साथ मिला लिया और इनको झगड़े में फंसा दिया इनको पुलिस पकड़ कर ले गई और आगरा की जेल में इनको बंद कर दिया गया यह शरीर में हष्ट पुष्ट बलवान एवं लंबे कद के थे जेल में यह बिना जुर्म करने की सजा काट रहे थे जो कि इन्होंने किया ही नहीं था यह जेल से निकलने की सोचने लगे जेल के अंदर ही जेल से बाहर निकलने की योजना बनाने लगे तभी इनको पता चला कि जेल के अंदर पहले से ही एक डाकू अपनी उम्रकैद की सजा काट रहा था उस डाकू को उम्र कैद की सजा हो चुकी थी इन्होंने उस डाकू से कहा कि आप मेरे कंधे पर बैठकर जेल की दीवार से कूद जाना और जेल से भाग जाना डाकू इनकी बातों में आ गया और इनके अनुसार ही काम करने लगा एक दिन इन्होंने उस डाकू को अपने कंधे पर बिठाकर जेल की दीवार से कुदाने लगे जैसे ही डाकू जेल की दीवार से कूदने वाला था तभी उन्होंने उस डाकू के पैरों को पकड़ लिया और जोर जोर से चिल्लाने लगे की डाकू जेल से भाग रहा है डाकू जेल से भाग रहा है तभी अंग्रेज सिपाहियों ने उस डाकू को पकड़ लिया और जेलर इनसे बहुत प्रसन्न हुआ कि आपने डाकू को जेल से भागते हुए पकड़ा है मैं आप को जेल से रिहा करने में आपकी मदद करूंगा सजा काटने के बाद पंडित खुशालीराम तिवारी जेल से रिहा कर दिए गए जेल से रिहा होने के बाद यह अपने ग्राम हिरनगाँव वापस आ गये और ग्रामवासी एवं परिवार के व्यक्ति इनसे जेल से रिहा होने का कारण पूछने लगे तभी पंडित खुशालीराम तिवारी द्वारा इस घटना का जिक्र अपने परिवार वालों एवं ग्राम वासियों से किया
परिवार के सदस्यों के लिए इससे बढ़कर त्यौहार एवं उत्सव क्या होगा