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16 Nov 2021 · 2 min read

तिवारी जी की कहानी

पंडित खुशालीराम तिवारी एक सच्चे हिंदुस्तानी थे कुछ अंग्रेज सिपाही इनसे द्वेष भावना रखने लगे अंग्रेज सिपाहियों ने इनको फंसाने के लिए कुछ हिंदुस्तानियों को कुछ लाभ देकर अपने साथ मिला लिया और इनको झगड़े में फंसा दिया इनको पुलिस पकड़ कर ले गई और आगरा की जेल में इनको बंद कर दिया गया यह शरीर में हष्ट पुष्ट बलवान एवं लंबे कद के थे जेल में यह बिना जुर्म करने की सजा काट रहे थे जो कि इन्होंने किया ही नहीं था यह जेल से निकलने की सोचने लगे जेल के अंदर ही जेल से बाहर निकलने की योजना बनाने लगे तभी इनको पता चला कि जेल के अंदर पहले से ही एक डाकू अपनी उम्रकैद की सजा काट रहा था उस डाकू को उम्र कैद की सजा हो चुकी थी इन्होंने उस डाकू से कहा कि आप मेरे कंधे पर बैठकर जेल की दीवार से कूद जाना और जेल से भाग जाना डाकू इनकी बातों में आ गया और इनके अनुसार ही काम करने लगा एक दिन इन्होंने उस डाकू को अपने कंधे पर बिठाकर जेल की दीवार से कुदाने लगे जैसे ही डाकू जेल की दीवार से कूदने वाला था तभी उन्होंने उस डाकू के पैरों को पकड़ लिया और जोर जोर से चिल्लाने लगे की डाकू जेल से भाग रहा है डाकू जेल से भाग रहा है तभी अंग्रेज सिपाहियों ने उस डाकू को पकड़ लिया और जेलर इनसे बहुत प्रसन्न हुआ कि आपने डाकू को जेल से भागते हुए पकड़ा है मैं आप को जेल से रिहा करने में आपकी मदद करूंगा सजा काटने के बाद पंडित खुशालीराम तिवारी जेल से रिहा कर दिए गए जेल से रिहा होने के बाद यह अपने ग्राम हिरनगाँव वापस आ गये और ग्रामवासी एवं परिवार के व्यक्ति इनसे जेल से रिहा होने का कारण पूछने लगे तभी पंडित खुशालीराम तिवारी द्वारा इस घटना का जिक्र अपने परिवार वालों एवं ग्राम वासियों से किया
परिवार के सदस्यों के लिए इससे बढ़कर त्यौहार एवं उत्सव क्या होगा

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