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1 Aug 2021 · 1 min read

तिरस्कार का दर्द

कंकड़ो का दर्द तुम क्या जानो साहब
सड़क किनारे तो पड़े हैं बगैर कोलतार के

कभी यही पहुंचा दिया था करते थे मंजिल पर तुम्हारी राह बनके

साहब ….
यह ना समझना इन कंकड़ो में अब जान नहीं

एक शख्स आया था
और ले गया संभाल के

बोलता था….
हम हर मोड़ पर एक रिश्ते को हम दफनाते चले गए
उखड़े हुए सारे कंकड़ो को उठाते चले गए
अभी जान बाकी है तुममें
तुम मेरेे काम आओगे

आखिरी मोड़ पर मेरी कब्र बनाने में…

उमेंद्र कुमार

Language: Hindi
1 Like · 331 Views

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