तिरछी निगाहे
तिरछी निगाहे
तिरछी निगाहे गोरी चल चल चल
चल मचल
चलाचल
करती बहाने गोरी
कल कल कल
चल निकल तू
चल चल चल
तिरछी निगाहे …..
मिलने की आशा में हर कोई प्यासा
प्रेम की निगाहों से
देख लो जरा सा
इतना जता दो
इतना बता दो
मिलन होगी कब ?
बाहों में आजा रानी
अब अभी जब कभी।
तिरछी निगाहे…
मौसमी नजाकत है
यौवन है भर आया
प्रेम की पुकार से
अंकुर फुट आया
प्रेम की पुजारी है
देखो पूजने आया।
खुशियों की बहारें
संग अपना लाया।
आंखें है झरना गोरी की
झर झर झर
निर्झर झर झर
तिरछी निगाहे….
संतोष कुमार मिरी
रसिक प्रेमी