तिरंगा
छूते मंजिल को वही,मतवाले रणधीर।
हाथ तिरंगा थाम के,करते जो प्रण वीर।
करते जो प्रण वीर,युगंधर कब रुकते हैं।
मात,पिता,गुरु और राष्ट्रऋण कब चुकते हैं।
कंटकीर्ण हो राह, हौसलों के बल बूते।
रुकते ना जो पाँँव,वहीं मंज़़ििल को छूते।।1।।
पीछे मुड़ ना देखते, बालक,वीर,मतंग।
ध्येय लिये ही निकलते, पैगम्बर,पीर,निहंग।
पैगम्बर,पीर,निहंग, धर्म का पाठ पढ़ाते।
राष्ट्रगीत और गान, राष्ट्र का मान बढ़ाते।
ध्वज का हो सम्मान, सभी सुख उसके पीछे।
नहीं समय,वय,काल, देखते मुड़ केे पीछे।।2।।