तिमिर घनेरा बिछा चतुर्दिक्रं,चमात्र इंजोर नहीं है
तिमिर घनेरा बिछा चतुर्दिक्रं,चमात्र इंजोर नहीं है
नहीं निशा यह जाने वाली,इसकी कोई भोर नहीं है
पता पूर्व से जो यह होता,क्यों जागा?रह जाता सोता।।
सरसों के फूलों-सा हँसता,मधुर कि जैसे कोकिल का स्वर
राजकमल-सा शुभ्र अनाविल,बचपन भी जायेगा तज कर
पता कहीं जो मुझको होता,फूट-फूट क्यों इतना रोता।।
जिसकी छाया में कटता था,चैन-भरे जीवन का पल-पल
उठ जायेगा सिर से इक दिन,सहसा वह करुणा का आँचल
पता पूर्व से मुझको होता,तो इतना धीरज ना खोता।।
जीवन के उपवन की सींची,हृदय-रक्त से क्यारी-क्यारी
फूलों के खिलने के पहले,लो, आई जाने की बारी
पता कहीं जो पहले होता,विटप-लता काहे को बोता।।