“तितली”
रंग-विरंगी तितली देखो,
सबका मन हर लेती है।
बच्चों की किलकारी से वे,
इधर उधर मंडराती हैं।।
रंग-बिरंगे पुष्पों का वे,
रस पान कर उड़ जाती हैं।
बगीचों की रौनक में वे,
हर समय आती जाती हैं।।
लगा माह बसन्त का जब,
देखो उनकी चालों को।
झुण्ड बनाकर आती हैं सब,
फूलों पे बैठ उड़ जाती वो।।
सारे फूलों का रस लेकर,
कहीं को फिर खो जाती हैं।
इधर-घूमती उधर-घूमती,
फिर आपस मे मिल जाती हैं।।
पर पे छोटे बिंदु हैं उनके,
जो हिय को हर लेते हैं।
मन मे उमंग भर देते हैं,
जो तरह-तरह के लगते हैं।।
छोटी-नन्हीं सी लगती हैं,
पर काम बड़ा कर जाती हैं।
तरह-तरह के फूलों का वे,
सबका मधु हर ले जाती हैं।।
सारा दिन बिताकर फूलों पे,
सब एक जगह हो जाती हैं।
निशा आने पर वे सब,
जाने कहाँ उड़ जाती हैं।।
#_विकाश_गुप्ता_#