तितली की झुंड मेरे मन को लुभा गई
मौसम बसंती आया हरियाली छा गई
दुलहन बनी जमीं है सिंगार पा गई
ठूंठे सभी शज़र थे बीमार जैसे थे
चेहरा खिला खिला है रौनक़ सी आ गई
अब वो कली हमल में पर्दा नसीं थी जो
कुदरत ने हाथ फेरा जान उसमे आ गई
होकर सयानी वो कली मदमस्त हो गई
भौंरे दिवाने कहते क़यामत है ढा गई
नग्में सुना रही है कोयल भी मस्ती में
तितली की झुंड मेरे मन को लुभा गई
छाई बहार हर सूं बहका हुआ समां
,”प्रीतम” सभी दिलों में खुशहाली आ गई