तासीर है मेरी अच्छा भी हूं बुरा हूं।
तासीर है ये मेरी अच्छा भी हूँ बुरा हूँ।
ये मैंने कब कहा है मैं आपसे खरा हूँ।
क्यों जाने लोग फिर भी रखते है साथ अपने।
जबकि है राय सबकी अक्खड़ हूँ खुरदुरा हूँ।
उतरेगी मय ख़ुमारी मत बात कर वफ़ा की।
इसमें उलझ के जीया सौ बार मैं मरा हूँ।
प्याले पे जान निकले या गोद हो तुम्हारी।
जीने से कब हूँ मुकरा कब मौत से डरा हूँ।
सूखा समझ के मुझसे कर लेना मत किनारा।
दरिया से उठ के आया मैं अब्र हूँ भरा हूँ।
ऐसा नहीं है कोई तारीफ़ नहीं करता।
सच बोलता हूँ अक्सर मैं इसलिए बुरा हूँ।
इक मौज़ हूँ ” नज़र” मैं मुझमे भरी रवानी।
दुनिया कहे आवारा समझे मैं बावरा हूं।