ताशकंद वाली घटना।
नमस्कार साथियों,
मैने आज एक काव्य कृति लिखने का प्रयास किया है जो की शास्त्री जी और होमी जहांगीर भाभा जी की रहस्यमयी तरीके से हुई मृत्यु से संबंधित है। कहीं न कहीं कुछ राजनीतियों की गलतियां रहीं होगी मेरा यह मानना है।
साथ ही मेरा मानना है जो शास्त्री जी और भाभा जी का व्यक्तित्व था उससे हमें ठीक तरीके से अवगत नहीं कराया गया इसलिए वास्तविकता में कहीं न कहीं शास्त्री जी को जो सम्मान जो आदर जो पहचान मिलनी चाहिए थी वो कहीं न कहीं पूर्ण रूप से उनको नहीं मिल सकी।
मैं कविता आपके समक्ष रखता हूं कृपया त्रुटि जांचकर अवगत अवश्य कराएं।
एक बार सोए जख्म फिर कुरेद लीजिए,
सत्ताओं की गलतियों के पर्दा खोल दीजिए।
ताशकंद वाली घटना को याद कीजिए,
उगता सूरज सोया क्यों ये सवाल कीजिए।।
मैं सवाल पूछता हूं अब जवाब दीजिए,
क्यों पड़ा शरीर नीला ये तो बता दीजिए।
न मिले जवाब तो फिर मुट्ठी भींच लीजिए,
सत्ताओं के मुंह पे दो तमाचे खींच दीजिए।।
सत्ताओं को आज गुनाहगार होना चाहिए,
कुर्सियों पर बैठकर शर्मिंदा होना चाहिए।
जिनकी वजह से दोषी खुले घूमते रहे,
उन राष्ट्र द्रोही कोमो से भी सत्ता छीन लीजिए।।
मैं सवाल पूंछने की हिम्मत दोहराता हूं,
सत्ता वालो सुनो कान खोलकर सुनाता हूं।
दस साल बाद क्यों समाजवाद आ गया?
लोकतंत्र वाला देश घाव नया खा गया।
KGB का कारनामा रंग नया ला गया,
संविधान में समाजवाद शब्द आ गया।।
मेरा भारत फिर से छलावे में छला गया,
अगला नाम होमी जहांगीर जी का आ गया।
पूंछता हूं देश के विज्ञान से पता लगाए,
है कोई जो भाभा जी की मौत का सुराग लाए।
जय जवान जय किसान बोल एक सो गया,
दूजा नाम जय विज्ञान बोलकर सो गया।
अंधी राजनीति कुर्सी तोड़कर सो गयी,
देश के भविष्य की चौपाल बंद हो गयी।
राजनीति अपना गंदा खेल खेलती रही,
दोनो मौत फाइलों के नीचे ही दबी रहीं।।
लेखक/कवि
अभिषेक सोनी
ललितपुर (उ0प्र0)