” ताल ठोकते हैं हम ” !!
गीत
संविधान ने छूट दी जितनी ,
उतने पसर गये हम !
हो अपमान भले किसी का ,
हमको काहे का गम !!
शीतकाल का सत्र का चला है ,
बिलकुल ठंडा ठंडा !
है विद्यायका सब पर भारी ,
दण्ड यहाँ पर मंदा !
जुबां चले शमसीर सरीखी ,
ताल ठोकते हैं हम !!
खण्ड खण्ड दिखता समाज है ,
किसने की दुर्गत है !
राज हमें करना है केवल ,
सबका एक ही मत है !
वोट विभाजित कर मानेगें ,
रखते हैं इतना दम !!
सबके सिर पाखण्ड चढा है ,
दोष रोज़ हैं मढ़ते !
मन भी है मन्दिर जैसा पर ,
किस्से झूंठे गढ़ते !
कैसे भी दें मार पटखनी ,
आँखें ना होती नम !!