तालाब समंदर हो रहा है….
तुम बोले, बहुत बढ़िया बोले,
तुम गरजे, कड़ कड़ाके गरजे,
बरसात तालियों की हुई,
गड़गड़ाहट आवाजों की हुई,
पुराने दरख्तों की जड़ें हिल गयीं,
पत्ते झड़ रहे हैं, आँधी चल रही है,
जमीन खिसक रही है, मूर्तियां गिर रही हैं,
भूकंप की चेतावनी,
रेत के महल को धूल में बदल रही हैं,
कोहरा छट रहा है, आसमान नीला दिख रहा है,
पंख आजाद हैं उड़ने को,
देखो हिमालय पर इंद्रधनुष कितना सुंदर दिख रहा है,
मधुमक्खी तितलियाँ फूल फूल पर उड़ रही हैं,
मधुहा देखो, शहद में हर फूल का अर्क घुल रहा है,
आज तालाब समंदर हो रहा है….!!
prAstya……(प्रशांत सोलंकी)