तार वीणा का हृदय में
गीत…95
तार वीणा का हृदय में अब बजा तो दीजिए।
भावना से युक्त भावों को सजा तो दीजिए।।
अक्षरों के नाद से झंकृत सभी ध्वनियाँ करें।
आचरण में सत्यता सद्भाव को हर जन धरें।।
आवरण ये व्यंजना का कुछ हटा तो दीजिए।
भावना से युक्त भावों को सजा तो दीजिए।।
बढ़ रही जो ग्रंथियाँ दूषित यहाँ पर लोभ से।
जल रहा अन्तस् हमारा है इसी के क्षोभ से।।
मालिका संवेद की मन में बसा तो दीजिए।
भावना से युक्त भावों को सजा तो दीजिए।।
डर रही जो चेतना है दुर्गुणों के मान से।
जीत सकते हैं इसे हम सत्यता के ज्ञान से।।
है जरूरी दीप को दर्पण बना तो दीजिए।
भावना से युक्त भावों को सजा तो दीजिए।।
पुष्प खुशियों को सहेजे बाग में खिलते रहें।
एकता सद्भावना से हाथ हर मिलते रहें।।
क्षुद्रता के अंशुकों को अब जला तो दीजिए।
भावना से युक्त भावों को सजा तो दीजिए।।
तार वीणा का हृदय में अब बजा तो दीजिए।
भावना से युक्त भावों को सजा तो दीजिए।।
डाॅ. राजेन्द्र सिंह ‘राही’
(बस्ती उ. प्र.)