तारे
रात के दामन में बिखर गए तारे।
के फिर रहे हैं रात भर मारे मारे।
रात बीते तो तसल्ली हो उन्हें,
घबरा गए हैं इस कदर तारे।
दिन में छिप जाते हैं कहीं,
रात को दिखाते हैं अपना हुनर तारे।
आकाश को सजाने का जिम्मा,
उठाते हैं उम्र भर तारे।
कभी उत्तम कभी मध्यम होकर,
टिमटिमाते हैं रात भर तारे।
-सिद्धार्थ गोरखपुरी