तारीफ की तारीफ
तारीफ करना भी उनकी
मुझको भारी पड़ गया
आंखों की खूबसूरती बयां की
और मामला बिगड़ गया।।
मैं ये जानता नहीं था कि
वो जब आंखें झुका जाते है
भरी दोपहरी में हर तरफ
घनघोर अंधेरा करा जाते है।।
वो तारीफ सुनकर मुझसे
जब अपनी आंखें झुका गए
भरी दोपहरी में हर तरफ
घनघोर अंधेरा करा गए।।
शरमाकर उनके गालों पर
लालिमा और बढ़ गई
आभा हो जैसे डूबते सूर्य की
उनके चेहरे पर चढ़ गई।।
जिससे उनकी खूबसूरती
और ज़्यादा बढ़ गई
आंखों में मेरी क्या है, आखिर
नज़रें उनकी पढ़ गई।।
भारी पड़ी थी जो बात पहले
अब वो ही मेरा काम कर गई
मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा
उन्हें भी मुझसे मोहब्बत हो गई।।
अब तो मेरा कृतज्ञ दिल
तारीफ की भी तारीफ करता है
नहीं मिलता दो चार दिन जब वो
मिलने की फरियाद करता है।।