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27 May 2021 · 1 min read

तारा

तारा

चाह नही रवि बन जाऊँ
तपूँ झुलसूँ जलती जाऊँ
नित लड़ती रहूँ अंधेरों से
केवल चढ़ते पूजी जाऊँ

धरा बनूँ ये भी न चाहा
एक ही धुरी पर नचाया
अपनी राह न चुन पायी
परिधि में रह क्या पाया

चाहत नही चाँद सी बनूँ
एकाकी मौन तनहा रहूँ
बस रूप बदलूँ हर घड़ी
चमक उधारी पर इतरूँ

बनना चाहूँ नभ का तारा
निज ज्योति चमकूँ सारा
अविरल अचल हो न मंद
नाचूँ मुक्त व्योम विस्तारा

न बंधन न तिमिर का डर
तय करूँ अपना मुक़द्दर
जगमगाऊँ झिलमिलाऊँ
टक जाऊँ नभ के उर पर

माना एक दिन टूट जाऊँगी
अमिट अमर न कहलाऊँगी
पर जाते जाते बन मन्नत
क़िस्मत इक संवार जाऊँगी

रेखांकन I रेखा

Language: Hindi
5 Comments · 247 Views

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