तात तुम पिता बन गये
जब जन्म हुआ मेरा , मिल पंच तत्व जग के
मेरे लिए पिता श्री , आप आकाश बन गये ।
जीवन की जलती धूप में , तुम छांव बन गये
नित साथ रह के तुम , जीत विश्वास बन गये।
हाथों में हाथ ले कर , चलना सिखाया तुमने
हारी जो बाजी कोई , झटपट जिताया तुमने ।
अनुभव जो थे तुम्हारे , उनसे सिखाया हमको
धर वरदहस्त अपना , निर्भय बनाया हमको ।
जहां था न कोई अपना , पूरा कराया सपना
हारे पलों में मेरी तुम , हार की जीत बन गये ।
आगे निकलता देख , थी दुनियां मेरे पीछे
तब गर्व भर के सीना , तुम ढाल बन गये ।
कांधे बिठा के तुमने , दिखलाये थे जो मेले
हैं याद अब भी मुझ को , जब रह गए अकेले ।
चतुराई से कभी भी , हमने किये जो लफड़े
मेरे भरम को तज तुम , मेरे भी बाप निकले ।
करने हैं लक्ष्य पूरे , रह गये अधूरे तुम बिन
फिर भी वो तेरा ऋण , न हो सके गा उऋण ।
क्या कहूं तुम्हें कोई बात , सब पूर्ण किये मेरे ठाठ
तात मैं रहा सदा तेरा तात ,तात तुम पिता बन गये।
डॉ पी के शुक्ला , मुरादाबाद ।