ताटंक छंद
ताटंक छंद
सृजन शब्द -झूले
दिनाँक 15.07.2022 शुक्रवार
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कान्हा मुरली गाती सरगम, धुन में प्रीत समाई है।
डाली डाली सजते झूले, राधा झूलन आई है।।
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मन को हरती ये हरियाली,मादक कण कण छाया है ।
यमुना तीरे कौतुक बढ़ता,गोपी मन हर्षाया है। ।।
आज नहीं मन वश में मेरे, रूप प्रेमी मन भाया है।
क्यों करते मनमानी कान्हा, देखो सावन आया है।।
आओ मिलकर झूला झूलें, डोरी प्रियतम पाई है।
डाली डाली सजते झूले, राधा झूलन आई है।।
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सुन्दर पायल छन छन बजती ,मनहर राग सुनाती है।
रंग मैहन्दी मोहती मन, साजन प्रीत बताती है।।
तुमबिन मोहन बनी विरहणी,पीडा़ पल पल पाती है।
नींद नहीं इन नैनन में अब,ढूंढन पिय को जाती है।।
संग संग ही रहना हरपल, सौगंध आज खाई है।
डाली डाली सजते झूले ,राधा झूलन आई है।।
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शीला सिंह बिलासपुर हिमाचल प्रदेश 🙏