ताज के अल्फ़ाज़।
हर किसी को बेवजह यूँ हिरासत में ना रखते हैं।
मुल्क में ऐसी बरबादी की सियासत ना करते हैं।।1।।
अपने ही आप नूर ए खुदा आ जयेगा चेहरे पर।
ऐसे यूँ दिखावे की ख़ातिर इबादत ना करते हैं।।2।।
दूसरा खिलौना बाजार से इक और आ जाएगा।
ऐसे खिलौना टूटने पर यूँ कयामत ना करते हैं।।3।।
फंस ना जाओ कहीँ तुम किसी बड़ी मुसीबत में।
हर जगह पर ऐसे भी पेश शराफत ना करते हैं।।4।।
खुदा से दुआओं में तुम भी जायज़ मंगा करो।
किसी भी चीज की जादा मलामत ना करते हैं।।5।।
ऐसे तो बन जाएगा ये सारा जमाना तेरा दुश्मन।
यूँ जमाने भर की कभी खिलाफत ना करते हैं।।6।।
शुरू हो जाएगा तेरा कच्चा चिट्ठा फिर खुलना।
ऐसे तो सरकार से खुलके बगावत ना करते हैं।।7।।
बिना सोचे समझे ना बनो उम्मीद किसी की भी।
टूटने पे फिर लोग तुम में अकीदत ना करते है।।8।।
ना जाने कौन हो यहां किस मूड में आया हुआ।
हरदम ही मजाक में सबसे शरारत ना करते हैं।।9।।
कभी तो गलतियां तुमसे भी हो सकती हैं इंसा।
हर वक्त ही दूसरों की यूँ शिकायत ना करते हैं।।10।।
तुम्हारा दिल फिर भर जाएगें बुराइयों से लोगो।
सारी छोटी-छोटी बातों पे अदावत ना करते हैं।।11।।
बड़े अकीदे का रिश्ता होता है यूँ इस इश्क का।
किसी से जहाँ में झूठ की मोहब्बत ना करते हैं।।12।।
तूम बे-वजह ही फिर हो जाओगे यहाँ बदनाम।
जिंदगी में यूँ हर किसी की सोहबत ना करते हैं।।13।।
बुला तो लिया लोगो को इन्हें खिलाओगे क्या।
बिना इंतजाम के ऐसे कोई दावत ना करते हैं।।14।।
बन जाओ तुम सब ही ईमान वाले सच्चे इंसान।
वरना काफिरों पर यूँ खुदा इनायत ना करते हैं।।15।।
बहेलियों को मना कर दो इस बाग में आने से।
वर्ना ये परिंदे दरख्तों के शाखों पर ना बैठते हैं।।16।।
हर किसी में यूँ बुराइयां ना निकालन बन्द करो।
वरना फिर ये दिल के रिश्ते सलामत ना रहते हैं।।17।।
उनका घर हमेशा ही नये घर के जैसा रहता है।
वह हमेशा से घर की मरम्मत सालाना करते हैं।।18।।
जाने किसे लूट कर लाया होगा वो सोना चांदी।
अपने पास कभी गैरों की अमानत ना रखते हैं।19।।
बचाके रखना अपनी साख कभी गिरने ना देना।
वर्ना लोग यूँ गिरी शाख की जमानत ना लेते हैं।।20।।
वह तो मांगता है सबकी ही खैर अपने खुदा से।
ऐसे सच्चे लोगो की कभी अलामत ना करते हैं।।21।।
जादा मोहब्बत जादा नफरत ना अच्छी होती है।
यूँ दिल को कभी किसी से लबालब ना भरते हैं।।22।।
इशारों को समझो इस शरीफों की महफ़िल में।
किसी को भी यूँ लगातार एकटक ना देखते हैं।।23।।
जैसी भी है जितनी भी है वह अच्छी है जिंदगी।
जाने भी क्यूँ लोग खुदा की न्यामत ना देखते हैं।।24।।
वह देखो ज़िन्दगी पर कितना खर्च कर रहा है।
गर रखते हो कुछ शौक तो लागत ना देखते हैं।।25।।
कितना भी समझाओ यूँ लोगों को ज़िन्दगी में।
लगा ही लेते हैं दिल इश्के आफत ना देखते हैं।।26।।
अब तो जिंदगी में सब पैसों का अदब करते हैं।
बदल जाते हैं लोग दिलों की चाहत ना देखते हैं।।27।।
कुराने अल्फ़ाज़ है आसमानी बेहुरमति ना करो।
अब लोग जाने क्यूँ इसकी तिलावत ना करते हैं।।28।।
यह कौन सा जमाना आ गया है मेरे जमाने में।
अबके बच्चे अपने बड़ों का अदब ना करते हैं।।29।।
तुम कहते हो हर तरफ ही सब गलत हो रहा है।
पर खुदा के अच्छे बन्दें कहीं गलत ना करते हैं।।30।।
इस देश में कितना ज़ुल्म ये काफिर कर रहे है।
इंसांनों के फैसले यहां के अदालत ना करते हैं।।31।।
जर्रे-जर्रे में समाई है खुदा की न्यामतें जहान में।
यूँ लोगों को कौन समझाए जो यह ना देखते हैं।।32।।
अब ये जिंदगी दोस्तों पर मरती दिखती नहीं है।
दोस्ती को लोग अब तो सखावत ना समझते हैं।।33।।
ऑनलाइन का आ गया है पढ़ने का ये जमाना।
बच्चों की मास्टर अबतो वो मरम्मत ना करते हैं।।34।।
कहां बचे हैं अब वो लोग जो थे ज़ुबाँ के पक्के। इसीलिए अब लोग जहां में कहावत ना बनते हैं।।35।।
इश्क का रिश्ता यूँ कभी मुकम्मल होते देखा है।
दरिया के किनारे साथ साथ होकर ना मिलते हैं।।36।।
जिन्दगीं जीने का सारा नजरिया बदल गया है।
लोग खुद को अब किसी से कम ना सोचते हैं।।37।।
क्या हो गया है लोगों के दिलों को यूँ दुनियाँ में।
कितना कुछ भी मिले पर उनके दिल ना भरते हैं।।38।।
ख्वाहिशें तो बड़ी कर ली है यूँ सबनें ही अपनी।
करना ना पड़े काम बस वे करामत का ढूंढते हैं।।39।।
सोचते तो बड़ा है इस जिंदगी में कुछ करने की।
पर कुछ भी वह अपनी ही आदतन ना करते हैं।।40।।
सबको ही चाहिए ज्यादा पैसा औ ज्यादा हुस्न।
रिश्ता करने में ये अब यहां सीरत ना देखते हैं।।41।।
वतन पर शहीद होना बस शहीद होना होता है।
छोटे ओहदे में मरने को ये शहादत ना कहते हैं।।42।।
काफी उम्र कट गयी है उसको काम करते-करते।
उसके हुनर के आगे ऐसे किताबत ना देखते हैं।।43।।
ये हस्ती बनती है बहुत मुश्किल से यूँ जिंदगी में।
पर इंसा अपने नफ्स की हिफ़ाजत ना करते हैं।।44।।
जमीर मार डाला है अदला बदली करते-करते।
सियासत में अब कोई नेता कद्दावर ना मिलते हैं।।45।।
थोड़ा से सीखे क्या चल दिए खुदको बेचने को।
उस्तादों से अबतो शागिर्द महारत ना सीखते हैं।।46।।
सबको ही एक रात का इंतजार है सब पाने का।
अब तो इंसान यूँ बूंद-बूंद से सागर ना भरते हैं।।47।।
तानाशाही ही करनी है तो नाम बदल दो इसका।
पाबन्दी वाले देश को कभी भारत ना कहते हैं।।48।।
बहुत परेशा है वो आजकल अपनी जिंदगी में।
दे देगा तुम्हारा भी कर्जा यूँ इतना ना टोकते हैं।।49।।
वह दिन कहाँ है जब दोस्ती पर सब कुर्बान था।
अब के कृष्ण सुदामा की सखावत ना करते हैं।।50।।
कहां ढूंढते हो सुकूँन इस बेदर्द दुनिया में तुम।
लोगों के अंदर यूँ अब तों फरिश्ते ना बसते हैं।।51।।
सबको ही पड़ी है बड़ी ही जल्दी घर जाने की।
अब यह नमाज़ी मस्जिदों में सुन्नत ना पढ़ते हैं।।52।।
चलो मान भी लो अब अपनी की गलती सबसे।
फंस जाने पे यूँ ऐसे झूठ सरासर ना बोलते हैं।।53।।
सब वसीयत करके अब वो हज को जा रहे हैं।
मां-बाप से कहो कि ऐसा भूलकर ना करते हैं।।54।।
मर जाओगे यूँ भूख-प्यास से रेत के समन्दर में।
ऐसे सेहरा में बेवजह ज्यादा वक्त ना ठहरते हैं।।55।।
उसको यूँ चिल्लाने दो वो कुछ कर पाएगा नहीं।
देखा होगा यूँ गरजने वाले बादल ना बरसते हैं।।56।।
ठहर लो थोड़ी देर और इस सुकूँन की छांव में।
बाद में फिर सभी माँ के आंचल को तरसते हैं।।57।।
बचपन ने भी जीने का अंदाज बदल लिया है।
बच्चों की आंखों में यूँ तो काजल ना लगते हैं।।58।।
अब उनको बस किस्से कहानियों में सुनना है।
यूँ लड़ने वाले कहीं जंग-ए-बशर ना मिलते हैं।।59।।
आजकल का जमाना बिल्कुल बदल गया है।
सूरज निकलने से पहले ये आदम ना उठते हैं।।60।।
कब से मना रहे हैं एक वह है कि मानता नहीं।
बहुत ज्यादा किसी की खुशामत ना करते हैं।।61।।
कभी-कभी मिल लिया करो आम लोगों से भी।
सबमें यूँ मिलने के लिए खासियत ना देखते हैं।।62।।
जहाँ बैठे हो आलिम खुदा को बताने के लिए।
वहाँ मजहब के मौजू पर दलालत ना करते हैं।।63।।
उनका काम है जुल्म करना वो जुल्म ही करेंगे।
दर्दों से डरसे काफिरों की इताअत ना करते हैं।।64।।
किस पर करें अकीदा सभी बेअकीदा हो रहे हैं।
आज के इंसा यूँ दिलों में नफासत ना रखते हैं।।65।।
उनको क्यों वास्ता देते हो खुदा की खुदाई का।
जब ये काफिर खुदा पर अकीदत ना रखते हैं।।66।।
क्या हुआ जो वह गरीब है पर दिल का अमीर।
ऐसे गरीबों की हर जगह इहानत ना करते हैं।।67।।
बिना हुकुम के वो कोई भी काम करता नहीं है।
पर अच्छे कामों के लिए यूँ इजाजत ना लेते हैं।।68।।
वो खुशी के वास्ते अच्छा बुरा सब ही कर रहे हैं।
देखो आज के यह इंसान आखिरत ना देखते हैं।।69।।
फायदा नहीं है किसी को भी परेशानी बताकर।
आज के लोग किसी की एआनत ना करते हैं।।70।।
जिसको देखो वो जा रहा है हज की बशारत को।
यूँ दिखावे की ख़ातिर तो जियारत ना करते हैं।।71।।
अपनों के लिए ना फुरसत है तो तुम्हें क्या देंगें।
आजकल सियासत दान किदायत ना करते हैं।।72।।
इन्हें मतलब नहीं है लोगो से बस पैसा चाहिए।
कारोबार वाले लोग अब तिजारत ना करते हैं।।73।।
यूँ तो भरी महफिल में सबने ही शर्मिंदा किया।
बे इज्जत हुए इंसान की कैफियत ना पूछते हैं।।74।।
आज के इंसा देखो यूँ कैसे वहशी से हो गए है।
वो बहन बेटियों पे अच्छी बसारत ना रखते हैं।।75।।
सभी के सभी मशगूल हैं अपनी अय्याशियों में।
वो सब इक दिन आएगी कयामत ना सोचते हैं।।76।।
सबतो गलत से गलत सारे ही काम कर रहे हैं।
अब लोग अपनी गलती पे नदामत ना करते हैं।।77।।
जाने कब वो तुम्हारे किसी बड़े काम आ जाए।
पैसों की खातिर कभी यूँ फजीहत ना करते हैं।।78।।
ये वहशी नजरें हैं जो हरपल तुझको देखती हैं।
दिख जाए जिसमें बदन वो चादर ना ओढ़ते हैं।।79।।
पढ़ लिख कर भी बेरोजगार के जैसे घूमता है।
अब इस दुनिया में इंसान जहांनत ना देखते हैं।।80।।
मंदिर,मस्जिद,गिरजाघर यूँ सारे ही घरों में गया।
जाने क्यों मेरी फरियाद खुदा-बंद ना सुनते हैं।।81।।
कहने के मददगार हैं सारे मौका परस्त हैं लोग।
जहाँ में अब जमीर के दौलतमंद ना मिलते हैं।।82।।
एक से एक सूरत हुस्न के बाजार में दिखती है।
सीरत के अच्छे यूँ कहीं गुलबदन ना मिलते हैं।।83।।
अगर किए हैं गुनाह तो फिर सजा भी मिलेगी।
गद्दारों के जैसे फिर यूँ कौमियत ना बदलते हैं।।84।।
हमेशा टोका टाकी से फिर बच्चे बिगड़ जाते है।
हरवक्त किसी को यूं ज्यादा नसीहत ना देते हैं।।85।।
वैसे तो सबकी तबीयत जानना अच्छा होता है।
पर मरने वाले इंसा से यूँ खैरियत ना पूछते हैं।।86।।
देखो मुद्दतों बाद वह खुल करके इतना हंसा है।
गम देकर ऐसे खुशियों में खयानत ना करते हैं।।87।।
ज़माने में हमनें दोस्तों,दुश्मनों से धोखे खाये है।
अब हम किसीसे दिल की रफ़ाक़त ना करते है।।88।।
जिसको देखो वही सिफ़ारिश से जेब भरता है।
अब यूँ ओहदों पर इंसाने सदाक़त ना बैठते है।।89।।
कितने दिनों से वह बुजुर्ग आते है इस दफ्तर में।
पर उनको परेशानियों के वज़ाहत ना मिलते है।।90।।
जिनके पास कुव्वत है इंसाफ दिलाने की यहां।
वे लोग भी अब गरीबों की हिमायत ना करते है।।91।।
गरीब का लड़का पढ़कर आगे ना निकल जाए।
स्कूल में सभी मास्टर उसे सही हिदायत ना देते।।92।।
अब के अमीर गरीबों को कोई इज़्ज़त ना देते है
वो अपने नौकरों को कभी सहूलियत ना देते है।।93।।
ऐसा नहीं है कि सब के सब बेईमान है यहां पर।
जो सच्चे होते है झूठों की हिमायत ना करते है।।94।।
ऐसा नहीं है कि सब के सब बेईमान है यहां पर।
जो सच्चे होते है झूठों की हिमायत ना करते है।।95।।
गरीबी अमीरी तो चलती ही रहती है ज़िंदगी में।
गर यूँ सीरत हो सामने तो हैसियत ना देखते है।।96।।
इंसानों का अंदाज ए बयाँ बद-सूरत हो गया है।
आज के ये लोग बातों में हलालत ना घोलते है।।97।।
तुमको उसके सारे वसीले से क्या लेना-देना है।
यूँ ऐसे तो काबिलियत की हकारत ना करते है।।98।।
कितनी उम्मीदों से कोई आता है यूँ तुम्हारे पास।
कभी किसी भी बेसहारा की अस्मत ना लूटते है।।99।।
तुम खुद ही हो बड़े समझदार ताज क्या बताये।
वह खुद ही बदकिस्मती से लुटकर देखो बैठे है।।100।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ