ताकि पानी को न तरसें
पर्यावरण बचाने के साथ ही जल संरक्षण बहुत जरूरी हो गया है। जल संरक्षण को ध्यान में रखकर उत्तर प्रदेश विधानसभा अध्यक्ष के आदेश के अनुपालन में प्रमुख सचिव प्रदीप दुबे ने एक आदेश जारी किया है। इसके तहत सरकारी कार्यालयों में आने वाले लोगों को आधा गिलास पानी दिया जाए। बाद में मांगे जाने पर अतिरिक्त पानी दिया जा सकता।
तर्क यह है कि जब प्यास लगती है तो हर इंसान पूरा गिलास पानी नहीं पीता। इस स्थिति में बचा हुआ आधा गिलास पानी फेंकना पड़ता है। चूंकि उत्तर प्रदेश एक बड़ा राज्य है, इसलिए यहां विधानसभा और अन्य सरकारी कार्यालयों में आने-जाने वालों की संख्या भी बहुत अधिक है। इस स्थिति में अनुमान लगाया जा सकता है कि आधे लोग भी आधा गिलास पानी फेंक दें दो एक बहुत बड़ी मात्रा में पानी की बर्बादी होगी।
उत्तर प्रदेश विधानसभा का यह प्रयास वाकई बहुत ही काबिले तारीफ है। इस आदेश को पूरे उत्तर प्रदेश सरकार के अधीन अन्य विभागों को भी लागू करना चाहिए। या यूं कहा जाए कि इससे पूरे देश को सीख लेनी चाहिए और इस आदेश को लागू करना चाहिए। यह प्रयास जल संरक्षण की दिशा में एक मील का पत्थर साबित हो सकता है।
इसके अलावा विचारणीय यह भी है कि जल संरक्षण की जिम्मेदारी सिर्फ सरकार की ही नहीं है। हम सबके संयुक्त प्रयास के बिना यह संभव नहीं है। हमें भी चाहिए कि सरकार की कोशिशों से अलग हटकर अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में जल संरक्षण का प्रयास करें। दैनिक जीवन में तमाम काम ऐसे हैं जो थोड़ी सी जागरूकता से किए जा सकते हैं। हम सबकी भागीदारी, प्रयास और अंदरूनी इच्छाशक्ति के बगैर यह काम नहीं हो सकता।
अक्सर देखने में आता है कि पानी की सबसे ज्यादा बर्बादी आम आदमी ही करता है। घरों में झाड़ू-पोछा, सफाई, नहाने, कपड़े धोने आदि रोजमर्रा के कामों में बेतहाशा पानी खर्च किया जाता है। वाशिंग मशीन से कपड़े धोने में कितना पानी खर्च या यूं कहें बर्बाद होता है, शायद हम इसका अंदाज भी नहीं लगा पाते, इस तरफ कभी ध्यान देने की कोशिश भी नहीं की।
पिछले एक-डेढ़ दशक से भौतिक सुख-सुविधाओं और ऐसो आराम की चीजों में बेतहाशा इजाफा हुआ है। इसमें सबमर्सिबल पंप भी है। छोटे और मझोले शहरों के बाद अब यह चलन गांव में भी शुरू हो चुका है। अपना अलग सबमर्सिबल पंप लगवाने का एक ट्रेंड चल पड़ा है। हर परिवार अपने घर में अपना अलग पंप लगवा चुका है या इस की कोशिश में लगा हुआ है। सबमर्सिबल पंप पानी की बर्बादी में अपनी अहम भूमिका निभा रहा है। देखा यह भी जाता है की टैंक भरने के बाद बहुत देर तक मोटर चलता रहता है और पानी यूं ही नाली में बहता रहता है।
तमाम लोग ऐसे भी हैं जिन्हें अच्छी मात्रा में पानी मुहैया हो रहा है। ऐसे लोग अपने घर के सामने, गली में, सड़क पर पानी का छिड़काव लगाते हैं। इससे पानी की बेतहाशा बर्बादी हो रही है। भविष्य के लिए यह एक खतरे की निशानी है। अभी भी समय है जल संरक्षण के प्रति हमें चेत जाना चाहिए। वरना आने वाले दिनों में हमारे यहां भी वही हालात होंगे जो सूखाग्रस्त क्षेत्रों के हैं। अपने हाथों अपनी बर्बादी की इबारत न लिखी जाए, यही बेहतर होगा। वरना आने वाली पीढ़ियों को जवाब भी देते नहीं बनेगा।
इन उपायों के जरिए पानी बचाया जा सकता है –
नहाने के लिए पानी भरकर ही इस्तेमाल करें। सीधे नल से पानी ज्यादा बर्बाद होता है।
रोजाना घर धोने के बजाय पोछा लगाना बेहतर होगा। जरूरत पड़ने पर बाल्टी-मग की मदद फर्श धोया जा सकता है। इस तरीके से पानी कम बर्बाद होगा।
कपड़े धोते समय उन्हें खंगालने के लिए बर्तन का प्रयोग करना बेहतर होगा। सीधे नल की धार के नीचे कपड़े खंगालने में पानी की बर्बादी ज्यादा होती है।
बर्तनों को धोने में भी पहले भरे हुए पानी का, बाद में नल का उपयोग किया जाए तो पानी की बचत हो सकती है।
घर में अगर सबमर्सिबल पंप लगा हुआ है तो इस बात का खास ध्यान रखा जाए कि पानी की बर्बादी न हो। इसके लिए जरूरी है कि टैंक ओवरफ्लो की सूचना के लिए एक बजर लगाया जा सकता है। बजर के जरिए टैंक भरने से पहले ही हमें पता लग जाएगा और एक बूंद पानी भी फालतू नहीं गिरेगा।
अपने घर के सामने गली में या रोड पर छिड़काव लगाने वालों को चाहिए कि वह इससे बचें। बेवजह सड़क पर छिड़काव करने से पानी की बर्बादी के अलावा कुछ हासिल नहीं होगा।
रोजमर्रा के कामों से निकलने वाले अपशिष्ट पानी को क्यारियों या खेतों का छिड़काव करने में इस्तेमाल किया जा सकता है।
अगर आप की बिल्डिंग बड़ी है या किसी ऐसे कार्यालय-कंपनी में काम करते हैं, जहां बिल्डिंग बहुत ज्यादा बड़ी है तो कोशिश करें कि वहां रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाया जाए। इसके लिए सरकार प्रोत्साहन दे रही है।
अपने घर के आसपास, कार्यालय या अन्य खाली जगहों पर पौधारोपण करके भी जल संरक्षण के साथ पर्यावरण को बचाया जा सकता है।
© अरशद रसूल