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7 Jun 2023 · 1 min read

तांडव प्रकृति जब करती है

तांडव प्रकृति जब करती है
विज्ञान अँधेरे में छिप जाता
मशीने खड़ी खड़ी रोती हैं
आधार उनका भी हिल जाता ।

आंधी तूफान के रूप में
नर्तन हवा जहाँ करती है ,
वहाँ कुसुमित आँगन धरा के
रंग में भंग है पड़ जाता।

लाचार लघु जीव सा मानव
पशु पक्षियों का भी बिखरा दल
तितर बितर कण कण हो जाता
कुछ भी सिमट नहीं है पाता ।

बादल में जब चमके बिजली
धरती पर जीवन डर जाता
रिमझिम बारिस का संकेतक
बनकर कहर बरस है जाता ।

घुटने विकास के टिक जाते
कोप प्रकृति का जब रुलाता
प्रगति राह के इस दानव को
मनुज मशीनी रोक न पाता ।

डॉ रीता सिंह
चंदौसी , सम्भल

Language: Hindi
1 Like · 329 Views
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