Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
21 May 2018 · 7 min read

ताँका की महक (ताँका संकलन की समीक्षा )

“तांका की महक”(प्रदीप कुमार दाश ‘दीपक’)

“तांका की महक” (तांका संकलन) / सम्पादक, प्रदीप कुमार दाश ‘दीपक’ / अयन प्रकाशन, नई दिल्ली / २०१८ मूल्य, रु.५००/-केवल / पृष्ठ सं.२३८

समीक्षक : डा. सुरेन्द्र वर्मा

प्रदीप कुमार दाश द्वारा संपादित तांका रचनाओं का नया संकलन, ‘तांका की महक’ इस बात का प्रमाण है कि हिन्दी साहित्य में हाइकु रचनाओं की तरह अब जापानी तांका छंद ने भी अपने पैर पसारना शुरू कर दिए हैं और यह हाइकु कवियों का एक पसंदीदा काव्य रूप होता जा रहा है | हिन्दी में हाइकु रचनाकारों के अब तक 15-16 एकल तांका संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं | यह श्रृखला 2011 से 2015 तक की केवल पांच वर्ष की अवधि में डा. सुधा गुप्ता से लेकर डा. राम निवास ‘मानव’ तक 16 हाइकुकारों तक फैली हुई है | इसके अतिरिक्त 2012 में रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ और डा. भावना कुंवर के सम्पादन में कई रचनाकारों का ‘भाव-कलश’ नाम से एक तांका संकलन भी आ चुका है | और अब इस प्रकार का दूसरा संकलन तेज़ी से उभरते हुए हाइकुकार प्रदीप कुमार डाश ‘दीपक’ का 2018 में आया है | हिन्दी में हाइकु लिखने वालों में पिछले छ:-सात वर्षों में तांका लिखने का यह उबाल बहुत कुछ डा. अंजलि देवधर को जाता है जिन्होंने एक सौ जापानी वाका कवियों की एक सौ रचनाओं का हिन्दी में अनुवाद प्रकाशित करवाया | इससे हिन्दी हाइकु कवियों में तांका काव्य–रूप के लिए एक सर्जनात्मक उत्सुकता पैदा हुई |
इधर जो करीब डेढ़ दर्जन तांका संकलन प्रकाशित हुए हैं, उनमें से कुछ पर मुझे समालोचनात्मक आलेख लिखने का सुअवसर मिला है | डा. मिथलेश कुमारी दीक्षित और डा. रमाकांत श्रीवास्तव के तांका संग्रहों पर मैंने अपने लेख :”हिन्दी में वाका तांका रचनाएं” में विस्तृत चर्चा की है | इसी प्रकार डा. सुधा गुप्ता के तांका संग्रह ‘तलाश जारी है’ तथा डा. कुमुद रामानंद बंसल के “झांका भीतर’’ में भी थोड़ा बहुत झांकने का प्रयत्न किया है | डा. राम निवास ‘मानव’ के ‘शब्द शब्द संवाद” से भी मेरा संवाद हो सका है और अब डास जी के सम्पादन में प्रकाशित अनेकानेक कवियों का एक तांका संकलन मेरे सामने है |
कभी कभी यह सोचकर बड़ा अजीब लगता है कि हाइकु काव्य-विधा जो वाका, (जिसे आज ‘तांका’ कहा जाता है) का ‘बाई-प्रोडक्ट’ (उपजात) है, वह स्वयं लोकप्रियता में हाइकु के पीछे रह गया | जापान में पहले वाका ही लिखा जाता था | वाका का अर्थ ही जापानी कविता या गीत है | ‘वा’, अर्थात जापानी; ‘का’, अर्थात गीत | इसे पांच पंक्तियों में ५-७-५-७-७ अक्षरों के क्रम में लिखा जाता है | बाद में हाइकु रचने के लिए इसकी पहली तीन पंक्तियाँ (५-७-५ अक्षरक्रम की) स्वीकार कर ली गईं और बाद की दो पंक्तियों को छोड़ दिया गया, और इस प्रकार ‘हाइकु’ का जन्म हुआ | लेकिन वाका अब अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा के पुनर्लाभ के लिए हैं प्रयत्नशील हो चुका है | हिन्दी के हाइकुकार अब बड़े शौक से तांका रचने में जुट गए हैं |
डाश द्वारा संपादित संकलन “तांका की महक” को ही देखें; उसमें थोडी न बहुत 271 कवियों की कुल 1421 तांका रचनाएं संग्रहीत हैं | पहले खंड में मान्य और प्रतिष्ठित 50 हाइकुकारों की 24-24 तांका रचनाएं हैं | द्वितीय खंड में 221 कवियों के एक-एक हाइकु हैं जिनमें कुछ तो मान्य और प्रतिष्ठित कई कवि भी सम्मिलित कर लिए गए हैं, जैसे, अनिता मंडा, डा. अमिता कौंडल, उमेश महादोषी, कमल कपूर, कमला घटाऔरा, कमला निखुर्पा, कल्पना भट्ट, कुमुद रामानंद बंसल, कृष्णा वर्मा, जेनी शबनम, ज्योत्सना शर्मा, नरेन्द्र श्रीवास्याव, पुष्पा मेहरा, डा. पूर्णिमा राय, प्रियंका गुप्ता, मधु गुप्ता, मुमताज़ टी एच खान, मंजू गुप्ता, मंजु मिश्रा, डा. रमाकांत श्रीवास्तव, डा. रमा द्विवेदी, डा.राजीव गोयल, डा. राजेन्द्र परदेसी. राजेन्द्र मोहन त्रिवेदी ‘बंधु’, कामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’, रेखा रोहतगी, रेनु चन्द्र माथुर, विभारानी श्रीवास्तव, शशि पाधा, शिव डोयले, सुभाष लखेड़ा, सुशीला शिवराण, हरकीरत ‘हीर’, इत्यादि | ये तो सभी प्रतिष्ठित कवि हैं और ज़ाहिर है, इनकी रचनाएं भी स्तरीय ही हैं, किन्तु ध्यातव्य यह है कि अन्य कवियों की तांका रचनाएं भी कमतर नहीं हैं |
प्रकृति चित्रण के लिए जिस तरह हाइकु रचनाएं जानी जाती हैं, उसी तरह तांका रचनाओं का भी प्रकृति से लघु लेकिन सुन्दर संलाप हुआ है –
छूते अछूते / अनुभूत क्षण का / सद्य निश्वास / कवि का प्रकृति से / लघु रह: संलाप || (सत्यपाल चुग)
अलसाई सी / सुबह सुहागन / उतर रही / अम्बर की छत से / पायल झनकाती || (आशा पाण्डेय ‘ओझा’)
चिनार-वृक्ष / हिम्रंजित वन / धरा वृक्ष पे / घूमते बादलों की / मीठी सी है छुअन || (कुमुद रामानंद ‘बंसल)
चाँद के घर / तारों का है पहरा / डरी चांदनी / परदा हटा सोचे / धरा पे जाऊं कैसे ? (रचना श्रीवास्तव)
प्रकृति की चर्चा हो और उसके ऋतु-चक्र का ज़िक्र न आए ऐसा हो ही नहीं सकता | प्रकृति की हर बदलती हुई ऋतु के सौदर्य को तांका रचनाकारों ने अपने काव्यात्मक शब्दों से निखारा है | ऋतु-राज वसंत से आरम्भ होकर ऋतुएं, वर्षा और शीत के बाद ग्रीष्म काल तक आती हैं | इस सन्दर्भ में संकलन की कुछ तांका कवितायेँ उल्लेखनीय हैं – ……….ग्रीष्म
जेठ महीना / सूर्य है लाल पीला / पलाश खिला / अमृत विष दोनों / चटक गई धरा || (विभारानी श्रीवास्तव)
तपे धरती / आसमान बरसे / ताकें निगाहें / सूनसान सड़कें / तरबतर मन || (ओमप्रकाश पारीक) ………वर्षा
घिर आई है / बदरी काली काली / आई तरंग / घन्ना उठी बिजली / चमकी असि धार || (पुष्पा मेहरा)
नभ का नीर / धो रहा सावन को / हरता पीर / ये हरित आलोक / करे हिया अशोक || (कमल कपूर)
सौंधी माटी में / किसान इबारत / स्वेद स्याही से / करिश्माई मौसम / बीज में बरकत || (पुष्पासिन्धी) ……..शीत .
ये स्याह रातें / कोहरे की आगोश / ठिठुरे बच्चे / चाँद को निहारते / चकोर रोटी जैसे || (डा. पूर्णिमा राय)
मौसम सर्द / कोई न समझता / धुंध का दर्द / ठण्ड में ठिठुरती / सबकी गाली खाती || (राजीव गोयल)
धूप सेंकती / सर्दी से ठिठुरती / दुपहरियां / आँगन में बैठी हों / ज्यों कुछ लड़कियां || (रेखा रोहतगी)
सर्द भोर में / सूरज बुनकर / खुश कर दे / गुनगुनी धूप की / ओढा कर चादर || (श्रीराम साहू‘अकेला”) ……..वसंत
मदन गंध / कहाँ से आ रही है / तुम आए क्या? / तभी तो महके हैं / मेरे घर आँगन || (भगवत दुबे)
टेसू ने रंगे / प्रकृति कैनवास / फागुन मेला / बैर दुश्मनी जले / प्यार सौहार्द खिले || (रमेश कुमार सोनी)
प्रेम एक ऐसी भावना है जिसे कविता में पिरोना कसे हुए तार पर चलना है | ज़रा सा पैर फिसला नहीं कि कवि वासना के पंक में फंस जाता है | एक मंजा हुआ कवि ऐसा कभी नही होने देता | दूसरी और प्रेम एक ऐसा भाव है जो यदि वाणी में भी आकार ले ले तो सहज ही अपनेपन की अभिव्यक्ति हो जाती है |–
पीपल तले / प्रेमप्रकाश में बंधे / सोए अलस / अन्धेरा व चाँदनी / सवेरा न हो कभी || (अमित अग्रवाल)
मैं मृण्मयी हूँ / नेह से गूँथ कर / तुमने रचा / अपना या पराया / अब क्या मेरा बचा || (डा.ज्योत्सना शर्मा)
प्रेम सिंचित / कांटे भी देते पुष्प / नागफनी से / चुम्बक मीठी वाणी / अपना ले सभी को || (ज्योतिर्मयी पन्त)
जहां प्रेम है, वहीं रिश्ते भी हैं | रिश्ता भाई का हो | बेटे-बेटियों का हो | मित्र का हो या किसी अजनबी से ही बन जाए, सभी का आधार प्रेम ही है | भाई कितना ही क्यों न चिढाता हो, बहिन उस पर निछावर रहती है, माँ अपनी नन्हीं बच्ची को देखकर मुग्ध होती रहती है –
खींचता चोटी / दिन भर चिढाता / फिर भी प्यारा / आओ मैं बाँध दूँ / रेशमी कच्चा धागा ||(ऋता शेखर ‘मधु’)
बंद अँखियाँ / नन्हे-नन्हें से हाथ / मुख है शांत / लगती मुझे प्यारी / कोमलांगी गुड़िया (सविता अग्रवाल ‘सवि)
बेशक, प्रेम का एक रूप देश प्रेम भी है | अपने वतन पर निछावर होने वाले नौजवान हंसते हंसते यदि शहीद हो जाते हैं तो इसके पीछे उनकी अपने देश के लिए बेमिसाल मुहब्बत ही तो है | ऐसे बेटों के शहीद होने पर माँ का ह्रदय स्वाभाविक रूप से चीत्कार तो कर उठाता है लेकिन अपने बेटे पर गर्व से उसका माथा ऊंचा हो जाता है –
शहीद की माँ / नेत्र में अश्रुधार / मेरा चिराग / भारत का सपूत / रोशन हिन्दुस्तान || (सविता बरई)
प्रेम चाहे व्यक्ति का हो या प्रकृति के प्रति, कभी मरता नहीं | यादों में सुरक्षित रहता है | ख्याति प्राप्त हाइकुकार रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ कहते हैं –
बंद किताब / कभी खोलो तो देखो / पाओगे तुम / नेह भरे झरने / सूरज की किरणे (रा. का. “हिमांशु”)
गुज़रा वक्त / गुज़रता कब है / जब भी देखो / ठहरा रहता है / अपने ही भीतर || (अनिता मांडा)
कल की यादें / रह रह सताती / फूल तितली / अलि कलि चुम्बन / संध्या गीत सुनाती (शिव डोयले)
“तांका की महक” यूं तो मनुष्य स्वभाव के सभी भावों को उनकी सुगंध के साथ बिखेरती है किन्तु इस संकलन में जीवन-दर्शन का सर्वोत्तम और सर्वाधिक निर्वाह हुआ है | कुछ तांका रचनाएं दृष्टव्य हैं –
मसखरा है / रोता रहे भीतर / हंसाता हमें / अजब जीवन ये / गज़ब कहानी है || (अनिल मालोकर)
उजली बाती / कोरे माटी के दीप / तन जलाएं / उजाले की खातिर / हंस पीड़ा पी जाएं || (कृष्णा वर्मा)
बनी जो कड़ी / ज़िंदगी की ये लड़ी / खुशबू फैली / मन होता बावरा / खुशी जब मिलती || (डा. जेनी शबनम)
पर्वत ऊंचे / समुन्दर गहरा / देखो बीच में / धरती सकुचाती / छिपाए है चेहरा || (प्रियंका गुप्ता)
नदी की धार / मानव का जीवन / बहता जल / न जाने कब तक / जी लो जी भर कर || (मधु गुप्ता)
जीवन भर / चलता नहीं कोई / किसी के साथ / भरोसा खुद पर / अकेला बस आगे || (मिथलेश कुमारी मिश्र)
चक्र सदैव / चलता रहता है / दुःख सुख का / कभी दुःख का क्रम / कभी सुख का भ्रम ||(डा. रामनिवास’मानव)
जिओ ज़िंदगी / मर मर के नहीं / ज़िदादिली से / नेमत है ज़िंदगी / गंवा न देना कहीं || (रीता ग्रोवर)
रात केवल / नहीं देती है तम / देती ये जन्म / उजले सूरज को / नवीन जीवन को || (सतीश राज पुष्करणा)
चाहूँ छेड़ना / जीवन बिना तार / सुर न सधे / कभी बहुत ढीले / कभी बहुत कसे || (संतोष बुद्धिराजा)
दर्द किताब / लिखी है ज़िंदगी ने / भूमिका हूँ मैं / आग की लकीर सी / हर इक दास्ताँ की || (हरकीरत ‘हीर’)
यह संकलन मुझे पूरी उम्मीद है कि तांका रचनाओं के लेखन को एक अतिरिक्त गति प्रदान करेगा | मैं प्रदीप कुमार दाश ‘दीपक’ को इस संग्रह के प्रकाशन हेतु बधाई देता हूँ | आशा नहीं विश्वास भी है की ये दीपक अपनी रोशनी से तांका साहित्य को थोड़ा और प्रकाशवान करेगा ||

डा. सुरेन्द्र वर्मा (मो.९६२१२२२७७८)
१०, एच आई जी / १, सर्कुलर रोड, इलाहाबाद -२११००१

Language: Hindi
Tag: लेख
1120 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.

You may also like these posts

एक पिता की पीर को, दे दो कुछ भी नाम।
एक पिता की पीर को, दे दो कुछ भी नाम।
Suryakant Dwivedi
ज़िन्दगी का मुश्किल सफ़र भी
ज़िन्दगी का मुश्किल सफ़र भी
Dr fauzia Naseem shad
चमत्कारी नेताजी।
चमत्कारी नेताजी।
Kumar Kalhans
शाम वापसी का वादा, कोई कर नहीं सकता
शाम वापसी का वादा, कोई कर नहीं सकता
Shreedhar
वो नींदें उड़ाकर दगा कर रहे हैं।
वो नींदें उड़ाकर दगा कर रहे हैं।
Phool gufran
पर्यावरणीय दोहे
पर्यावरणीय दोहे
Sudhir srivastava
फैला था कभी आँचल, दुआओं की आस में ,
फैला था कभी आँचल, दुआओं की आस में ,
Manisha Manjari
वक्त की रेत
वक्त की रेत
Dr. Kishan tandon kranti
अहसास से नम  नहीं करतीं रिश्तों की मुलायिमत
अहसास से नम  नहीं करतीं रिश्तों की मुलायिमत
Atul "Krishn"
अरमान गिर पड़े थे राहों में
अरमान गिर पड़े थे राहों में
सिद्धार्थ गोरखपुरी
मुझ पे एहसान वो भी कर रहे हैं
मुझ पे एहसान वो भी कर रहे हैं
Shweta Soni
मेरे पास, तेरे हर सवाल का जवाब है
मेरे पास, तेरे हर सवाल का जवाब है
Bhupendra Rawat
सखी
सखी
ललकार भारद्वाज
■ आज का क़तआ (मुक्तक)
■ आज का क़तआ (मुक्तक)
*प्रणय*
" ब्रह्माण्ड की चेतना "
Dr Meenu Poonia
धर्म कर्म
धर्म कर्म
Jaikrishan Uniyal
कितना करता जीव यह ,
कितना करता जीव यह ,
sushil sarna
बड़ी मां
बड़ी मां
Nitin Kulkarni
अच्छी थी पगडंडी अपनी।सड़कों पर तो जाम बहुत है।।
अच्छी थी पगडंडी अपनी।सड़कों पर तो जाम बहुत है।।
पूर्वार्थ
हमारा घोषणा पत्र देख लो
हमारा घोषणा पत्र देख लो
Harinarayan Tanha
पुष्प वाटिका में श्री राम का समर्पण
पुष्प वाटिका में श्री राम का समर्पण
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
ग़ज़ल
ग़ज़ल
Neelofar Khan
Ant lily Weds Elephant Tongo
Ant lily Weds Elephant Tongo
Deep Shikha
3958.💐 *पूर्णिका* 💐
3958.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
अतुल वरदान है हिंदी, सकल सम्मान है हिंदी।
अतुल वरदान है हिंदी, सकल सम्मान है हिंदी।
Neelam Sharma
अस्तित्व
अस्तित्व
Shyam Sundar Subramanian
कच्चे मकानों में अब भी बसती है सुकून-ए-ज़िंदगी,
कच्चे मकानों में अब भी बसती है सुकून-ए-ज़िंदगी,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
ऑनलाइन फ्रेंडशिप
ऑनलाइन फ्रेंडशिप
Dr. Pradeep Kumar Sharma
एक दुआ दिल से
एक दुआ दिल से
MEENU SHARMA
वृक्षारोपण
वृक्षारोपण
ओमप्रकाश भारती *ओम्*
Loading...