तहज़ीब का फरेब
ऐसी मशालें जल उठी हैं
ज़ुल्मत की रात में!
एक इंकलाब का ख़ौफ़ है
दरबार-ए-ख़ास में!!
क़ायम रहेगा कब तक यह
तहज़ीब का फरेब!
अब तो क़लम पड़ गया है
गुलामों के हाथ में!!
Shekhar Chandra Mitra
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