तस्वीर
तस्वीर उसकी खोजते- खोजते खुद अपनी गुमा बैठा हूँ,
आज मन्दिर में ही देखो अपनी मस्ज़िद बुला बैठा हूँ,
वक्त लगा है अँधेरे समझ के दायरे से बाहर आने में,
मगर सच है आज अपने मैं सभी पाप भुला बैठा हूँ,
बन्धन पहले ही बहुत थे बाँधने को मेरे बढ़ते हुए कदम,
सो आज मैं अपनी सर टोपी और माथे का चन्दन धुला बैठा हूँ,
कभी किसी की भी बात में जो आया ही नहीं “राही” ,
आज भुला के हर बात अपना सीना फुला बैठा हूँ।।
राही अंजाना