“” *तस्वीर* “”
“” तस्वीर “”
***********
( 1 )” त “, तत्त्वत:
जो दिखता तस्वीर में,
शायद, उससे हूँ मैं बेहतर !
ये मेरा छायाचित्र नहीं, बल्कि…..,
गया उकेरा हूँ एक चित्रकार की नजर !!
( 2 ) ” स् “,स्वयं
को स्वयं से जानना,
और समझना है आसां नहीं !
पहले, इसके कि, हम जानें स्वयं को.,
देखना पड़ता स्वयंको बनके दृष्टा यहीं !!
( 3 ) ” वी “, वीक्षणीय
है स्वयं को देखना,
और परखना समय-असमय पे !
कब क्या कैसे हो रहा परिवर्तन….,
है ये सब जानना, जरूरी यहाँ पे !!
( 4 ) ” र “, रहिए
सदैव बनके जागरूक,
और खोजते रहें स्वयं को स्वयं से !
हो जाएंगे आप ये सब देख-जान विस्मित..,
कि,ये हो रहे परिवर्तन हैं सभी कुछ हटके!!
( 5 ) ” तस्वीर “, तस्वीर में
अपनी ही तस्वीर ढूंढ़ता,
खोजता हूँ, सदा अपने अक़्स को !
यहाँ खुद का खुद से परिचय करवाना,
उससे मिलना और अपने को टटोलना..,
है एक टेढ़े-मेढे पथ पे चलने जैसा मानो !!
( 6 ) ” तस्वीर “, तस्वीर देख
कभी लगता है जैसे,
कि, स्वयं को लिया है बखूबी पहचान !
किन्तु, अगले ही पल, ये सब लगता बेमानी,
कि,इस स्वयं की खोज में जाऊंगा कहाँ तक,
अब, ये नियति ही जाने, हूँ मैं बना अंजान !!
¥¥¥¥¥¥¥¥¥¥¥¥¥
* वीक्षणीय: विचार करने योग्य
सुनीलानंद
शुक्रवार,
24 मई, 2024
जयपुर,
राजस्थान |