तस्वीर
तस्वीर
खींचकर कुछ आड़ी तिरछी लकीरें
इक दिन कोरे कागज पर।
मुझसे भोला बचपन बोला
यह तस्वीर तुम्हारी है मां ,
और मुझे नन्हे हाथों से झंझोला।
फिर से पेंसिल घुमाकर बोला
देखो यहां आपके बाल खुले हैं,
चलो मैं इनका जूड़ा बनादूं,
रंगीन पेंसिल घुमाकर बोला
बालों में थोड़े फूल सजा दूं।
कभी माथे पर सजाई बिंदिया
कभी काजल आंखों में उकेरा।
आड़ी तिरछी देख लकीरें मुझे कुछ समझ नहीं आया,न जाने उसकी कल्पना में था उसने क्या क्या बनाया।
थोड़ी देर में फिर से बोला,
मम्मा अब यह चित्र है मेरा
गोल गोल कुछ बनाकर बोला
देखो हम दोनो की मैंने
कितनी सुंदर तस्वीर बनाई।
उसका भोला भाव देखकर
मेरी आंखें भर आईं।
थोड़ी देर में बोला, देखो
सूरज खिड़की से झांक रहा।
देखो ये वो चिड़ियां जो छत पर आती,
यें हैं दाने चुग रही।
मैं बोली मेरे राजा बेटा तुमने पापा नहीं बनाए?
बोला वो तो आफिस गये हैं, वापस अभी नहीं आए। सुनकर उसकी भोली बातें मेरे चेहरे पर मुस्कान छाईं। लौट गयी मैं अपने बचपन में मुझे फिर बचपन की याद आई।
नीलम शर्मा