तस्मात् योगी भवार्जुन
ये कविता / गीत मेरी स्वरचित एवं मौलिक रचना है |
“” तस्मात् योगी भवार्जुन “”
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( 1 ) हे अर्जुन
आप परम श्रेष्ठ योगी हो ,
बनिस्बत, समस्त ज्ञानवान पंडितों के !
हो आप एक अप्रतिम योगिराज अर्जुन…,
और रहते बनें कार्यरत, अपने सत्कर्मों में !!
( 2 ) हे पार्थ
आप तपस्वियों से बढ़के हो,
क्योंकि, आपकी बनी रहे, धर्म में श्रद्धा !
हो आप एक नेक सुहृदयी कर्मयोगी….,
और करते चलो सदैव यहाँ धर्म की रक्षा !!
( 3 ) हे महाबाहो
आप कर्मियों से श्रेष्ठ हो,
क्योंकि, नहीं है आपमें सकामभावना !
हो आप तीनों ही वर्गों में सर्वश्रेष्ठ योगी…..,
और रखते हो सबके प्रति मन में सदभावना !!
( 4 ) हे गुडाकेश
आप हो मेरे प्रिय शिष्य,
क्योंकि, नींद एवं अज्ञान को आपने जीता !!
हो आप सम्यक ज्ञान से पूर्ण योद्धा धनुर्धर..,
और आपके चारित्रय बल ने मुझे रिझा लिया !!
( 5 ) हे धनञ्जय
आप हो मेरे अभिन्न मित्र,
क्योंकि, आप बनें मेरी कार्यकारिणी शक्ति !
हूँ मैं नारायण, आप हो श्रेष्ठ नर कौन्तेय…..,
और आप चलें बहाते प्रेम सद्भाव की भक्ति !!
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सुनीलानंद
रविवार
05 मई, 2024
AT : 10:42 p.m.
जयपुर,
राजस्थान |