तलाश
हाज़िर हूँ अपनी छोटी सी कोशिश के साथ
वक़्त वेवक्त चौक में दौड़ती थी जो शाम
अब हर रोज वही मैं शाम तलाशती हूँ
जो बस् गया मेरे वजूदो ज़हन ज़र्रा ज़र्रा
हर शहर हर गली में वो अक्स तलाशती हूँ
तोड़कर दीवारें मिटटी की बना लिये मकान
इन मकानों में छोटा सा एक घर तलाशती हूँ
तिल गुड़ के लड्डू और संग मूंगफली खाना
वो तिजारत और मोहब्बत तलाशती हूँ
कोई भी नहीं था अपना मोहहले में यकीन था
आज इन अपनों में मैं अपना तलाशती हूँ
मुफलसी में भी नसीब रईस हुआ करते थे
अब दौलत में भी वो सच्ची दौलत तलाशती हूँ
खो सा गया है हिन्दुस्तान दिखावे की होड़ में
अक्सर सोचती प्रतिभा आखिर क्या तलाशती हूँ