*तलाश है जिनको* वे दोहन करें,
***तलाश है जिनको,
वे दोहन करें,
जिनको कछु गयो भुलाय,
अपना तो तन-मन आतम है साथ में,
फिर कौन भेद !
महेंद्र रेल में है या फिर जेल में…!
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चित्रण मेरे चरितार्थ है नहीं,
गर बोली जाये मिशाल !
सनातन मेरा नाम !
कहाँ कहाँ झूठ बुलंद है,
पकड़ी न जाये,
बिन जाने,
बिन जागे,
उकाब सबल है,
सूक्ष्म है,सवत: है,
कौन विवेक !
कौन अनुभव !
Mahender Singh Author