तलाश।
हबीब किसी के बन ना सके तो,
ना रहिए बन कर रक़ीब भी,
कि बेयक़ीं है ये सफ़र-ए-ज़िंदगी,
और है थोड़ा सा अजीब भी,
दूर रहकर भी पास रहें,
और रहें थोड़े करीब भी,
यूं ही ना छोड़िए साथ किसी का,
कि फिर मिला ना सके नसीब भी,
रिश्तों की तलाश में फिरते हैं यहां,
अमीर भी और ग़रीब भी।
-अंबर श्रीवास्तव